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अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली
All India Institute Of Medical Sciences, New Delhi
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नेत्र सूक्ष्म जैवविज्ञान (ऑक्युलर माइक्रोबायोलॉजी)

नेत्र सूक्ष्म जैवविज्ञान (ऑक्युलर माइक्रोबायोलॉजी)

क्लैमाइडिया ट्रैकोमाइटिस की प्रत्यक्ष पहचान

क्लैमाइडिया ट्रैकोमाइटिस जीवाणुओं की वृद्धि का शरीर में समावेश

क्लैमाइडिया ट्रैकोमाइटिस को क्लीनिकल नमूनों से पृथक करना

एचएसवी की इम्यूनोफ्लोरेसेंस आधारित पहचान

नेत्रों के नमूनों से जीवाणु को पृथक करना

कॉर्नियल अल्सर्स से पृथक किए गए एस. एडपीडरमाइडिस हेतु स्लाइम परीक्षण इंड.-ज.-मेडि.-रिस. 2000

एस. एडपीडरमाइडिस में स्लाइम उत्पादन हेतु कोन्गोरेडेगर प्रणाली इंड.-ज.-मेडि.-रिस. 2001

बहु-औषधि प्रतिरोधण और स्लाइम सकारात्मक एस. एडपीडरमाइडिस की तनाव में शामिल होते है 21 केबी प्लास्मिड इंड.-ज.-- ओफ्थाल्मोल  2007

ए.नाइजेर से एम्फोटेर्सिन बी तक कॉनिर्यल अल्सर की कवकरोधी संवेदनशीलता को पृथक करना

 

आचार्य और प्रमुख

डॉ. गीता सत्पथी

संकाय

डॉ. निशांत हुसैन अहमद

 

वैज्ञानिक

डॉ. अंजना शर्मा

उपलब्ध सुविधाएं:

  1. बैक्टीरिया के संवर्धन और एंटीमिक्राबियल संवेदनशीलता परीक्षण
  2. फंगल संवर्धन
  3. वायरल और क्लैमिडियल संवर्धन के लिए उपयोग किए जाने वाला पूर्ण ऊतक संवर्धन
  4. एकैन्थेमोएबा जीवाणु वृद्धि सुविधाः यह सेवा भी सीएसएफ जीवाणुओं के पालन के लिए एम्स के अन्य विभागों हेतु प्रदान की जाती है।
  5. इंडो-यूके सहयोग के अधीन निर्मित क्लैमाइडिया संदर्भ प्रयोगशाला। इस सुविधा का उपयोग भी एम्स के अन्य विभागों तथा देश के अन्य संस्थानों द्वारा किया जाता है।
  6. आण्विक जीवविज्ञान प्रयोगशाला

नेत्र सूक्ष्म जैवविज्ञान (ऑक्युलर माइक्रोबायोलॉजी) द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएं:

-        जीवाणु संवर्धन और एंटीमाइक्रोबायल संवेदनशीलता परीक्षण

-        फंगल संवर्धन

-        एकंथोमोबा के लिए संवर्धन और पीसीआर।

-        उपरोक्त सभी के लिए घरेलू तौर पर जीवाणु वृद्धि के माध्यम की तैयारी।

-        क्लैमाइडिया एंटिजेन, सेरोलॉजी, कल्चर एवं पीसीआर परीक्षण

-        सरल परिसर्प (हर्पीज़ सिम्प्लेक्स) वायरस का पता लगाना।

-        ऊतक संवर्धन में वायरल अलगाव

-        बैक्टीरिया, फंगी, वाइरस, क्लैमाइडिया और एकैन्थोमोएबा के लिए पीसीआर परीक्षण।

-        संक्रामक तौर पर आँख-आने की बीमारी की जाँच (कल्चर, पीसीआर तथा एंटिजेन की पहचान द्वारा इसके कारक वाइरस का निर्धारण), जो लगभग प्रत्येक वर्ष दिल्ली में होता है।

हम औसतन 17,000 नमूनों को प्रत्येक वर्ष प्रक्रियागत करते हैं।

अनुसंधान गतिविधियां:

आज तक डीबीटी, आईसीएमआर, सीएसआईआर इत्यादि द्वारा वित्तपोषित कुल 22 बाहरी अनुसंधान परियोजनाओं तथा पाँच एम्स द्वारा वित्तपोषित परियोजनाओं को विभाग द्वारा शुरू किया गया। उनमें से उल्लेखपूर्ण हैं इंडो-यूके सहयोग परियोजना (ओवरसीज़ डवेलपमेंड आथोरिटी, यूके, आईसीएमआर तथा डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केंद्र के बीच एक त्रिपक्षीय परियोजना), जिसे क्लैमाइडिया संदर्भ प्रयोगशाला की स्थापना हेतु डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केंद्र में लिया गया था; और सीएसआईआर एनएमआईटीएलआई (न्यू मिलेनियम टेक्नोलॉजी लीडरशिप इनिशिएटिव) परियोजना जो कि नेत्र रोगों हेतु अभिनव मॉलेक्युलर निदान के विकास के लिए तथा कमजोर दृष्टि के उन्नयन हेतु उपकरणों के विकास के लिए था, व आँख-आने की बीमारी के कारक वाइरसों के विरुद्ध सिरना के विकास के लिए एक डीबीटी परियोजना।

क्लैमाइडियाल संक्रमण हेतु क्षेत्रीय संदर्भ प्रयोगशाला की स्थापना ब्रिटिश सहयोग की सहायता अनुदान परियोजना के अंतर्गत की गई थी। कल्चर प्रणाली, प्रतिदिप्ति का पता लगाने, मॉलेक्युलर पहचान एवं सेरोलॉजिकल पहचान प्रणालियों का विकास एवं मानकीकरण किया गया। इनका उपयोग व्यापक एपिडेमायोलॉजीकल परीक्षण को फॉलीक्युलर आँख-आने की बीमारी, सर्विसाइटिस, यौन संचरित रोगों तथा अर्थेरोस्केलेरोसिस के रोगियों के साथ संचालित करने में किया गया था। क्लैमाइडिया ट्रैकोमाटिस के विरुद्ध मोनोक्लोनल एंटिबॉडी विकसित किया गया और इसका उपयोग करते हुए एक एंटिजेन पहचान की ईएलआईएसए विकसित किया गया। क्लैमाइडिया ट्रैकोमाटिस के बाहरी श्लेष्मा-झिल्ली प्रोटीन को क्लोन किया गया तथा ई.कोली पॉलीमेरेस चेन प्रतिक्रिया आधारित परीक्षण में क्लैमाडिया न्यूमोनी हेतु दर्शाने के लिए विकसित किया गया, व नवजात न्यूमोनिया की जाँच की गई थी। क्लैमाइडिया ट्रैकोमाटिस के लिए प्रयोगशाला ने एक जेनोमिक ग्रंथागार की तैयारी की तथा कुछ इम्यूनो-रिएक्टिव क्लोन्स को ग्रंथागार से विकसित किया। इन परीक्षणों को अब संस्थान के कई संबंधित विभागों को प्रदान किया जा रहा है। 16एस-23एस आरआरएनए जीन के विस्तारण का उपयोग करते हुए रिबो-टापिंग द्वारा क्लैमाइडिया ट्रैकोमाटिस की जेनोटाइपिंग, जिसके उपरान्त पॉलीमोर्फिज़म व डीएनए क्रमों का संचालन प्रतिबंधित फ्रैगमेंट लंबाई में किया गया। यह तनाव को सवंमित करने वाले जननांगों के बीच अंतर को इंगित करता है जो नेत्रों को संक्रमित करते हैं।

इसके अलावा, स्ट्रेपोकोकूस न्यूमोनिए के मॉल्यूकर एवं सेरोटाइपिंग को नेत्र संक्रमण से पृथक करता है, साथ ही साथ इससे प्रणालीगत संक्रमण को सूचीबद्ध एवं प्रकाशित किया गया है।

डीबीटी परियोजना कार्य के अंतर्गत सिरना को आँख-आने के कारक वाइरसों के विरुद्ध विकसित किया गया था।

बहुकेन्द्रीय सहयोग परियोजना में एक सीएसआईआर एनएमआईटीएलआई (न्यू मिल्लेनियम टेक्नोलॉजी लीडरशीप इनिशिएटीव) कार्यक्रम को विकसित किया गया जिसमें एक डीएनए माइक्रोचिप को 15 सामान्य पैथोजेन्स की एक साथ पहचान की गई जो कि नेत्र तथा सीएनएस संक्रमण के कारक होते हैं। इस चिप को भारत में तथा यूरोप, एशिया और यूएसए के कई अन्य देशों में नेत्र तथा सीएनएस संक्रमण के लिए पहले ही पेटेंट किया गया है।

मॉलेक्युलर एवं फेनोटाइपिक प्रणालियों को दवा-संवेदनशील एवं दवा-प्रतिरोधी माइसेलियल फंगल आइसोलेट्स के लिए माकोटिक केराटाइटिस में विकसित और मानकीकृत किया गया है।

स्लाइम का उत्पादन करने वाले जीवाणु जैसे स्टोफाइलोकोकुस एपिडरमाइडिज़म केराटाइटिस और इंट्रा-ऑक्युलर उपकरण से संबंधित संक्रमणों का अध्ययन उनके फेनोटाइपिक एवं जेनोटाइपिक गुणों के लिए किया गया है जिससे कि इन पैथोजेनेसिस में बैक्टीरियल केराटाइटिस के प्रभावों तथा उपकरण से जुड़े संक्रमणों की पहचान की जा सके।

एक आईसीएमआर वित्तपोषित परियोजना के अंतर्गत, एकैन्थोमोएबा आइसोलेट्स के जेनोटाइपिंग हेतु कार्य जारी है जो कि नेत्र तथा सीएनएस संक्रमण का कारण होते हैं।

पीएचडी कार्यक्रमः

8 से अधिक पीएचडी विद्यार्थियों ने अपनी पीएचडी ऑक्युलर माइक्रोबायोलॉजी में पूर्ण की है और वे भारत तथा इसके बाहर कई जिम्मेदार पदों पर कार्य कर रहे हैं। वर्तमान में 3 पीएचडी विद्यार्थी अपनी पीएचडी नेत्र सूक्ष्म जैवविज्ञान (ऑक्युलर माइक्रोबायोलॉजी) में कर रहे हैं।

प्रकाशन

250 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशनों को नेत्र सूक्ष्म जैवविज्ञान (ऑक्युलर माइक्रोबायोलॉजी) में किए गए अनुसंधान कार्यों पर प्रकाशित किया गया है।

 

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