अनुसंधान और क्लिनिकल कार्यक्रम
यह विज्ञान है। यह एक सम्पन्न देश में अकेला ही भूख और गरीबी, अस्वच्छता और निरक्षरता की समस्याओं को सुलझा सकता है, यह परम्पराओं और रीति रिवाजों के डर तथा भय को समाप्त कर सकता है, संसाधनों की बर्बादी को रोक सकता है, जहां भूख से तड़पते लोग हैं।
जवाहरलाल नेहरू
एम्स का अनुसंधान केवल नियमित गतिविधि नहीं है बल्कि यह तीन उद्देश्यों के साथ एक मिशन है। कहीं अन्यत्र भी अनुसंधान का प्रयोजन अनुशासनिक गतिविधि द्वारा जिज्ञासा को शांत करना होता है और इस प्रकार नए ज्ञान का सृजन होता है। परन्तु एम्स में हम अपनी अनुसंधान भूमिका के प्रति सचेत हैं जो हम अध्यापन की गुणवत्ता को सुधारने में निभा सकते हैं। एक अध्यापक यदि अनुसंधान में संलग्न है तो उसके पास नवीनतम जानकारी होनी चाहिए और वह अपने छात्रों में पूछताछ की भावना और आजादी भी पैदा कर सकता है। अंत में एम्स का अनुसंधान हमारे राष्ट्रीय प्रयास के अलावा हमारे समाज में एक वैज्ञानिक सोच उत्पन्न करने के लिए है तथा हम अपने समाज से प्राधिकार और अंधविश्वास समाप्त करना चाहते हैं।
ऊतकों के मात्रात्मक और स्टेरोलॉजिकल अध्ययन के लिए छवि विश्लेषण प्रणाली
एम्स का अनुसंधान हमारे राष्ट्रीय प्रयास के अलावा हमारे समाज में एक वैज्ञानिक सोच उत्पन्न करने के लिए है तथा हम अपने समाज से प्राधिकार और अंधविश्वास समाप्त करना चाहते हैं।
एम्स को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से विशाल अनुसंधान प्राप्त होते हैं, संस्थान अपनी ओर से मध्यम दर्जे के अनुसंधान अनुदान भी प्रदान करता है। ये अनुदान परियोजनाओं को जमा करने के बाद समितियों के जरिए उनकी छानबीन के बाद प्रदान किए जाते हैं और ये कनिष्ठ संकाय को अनुसंधान की प्रेरणा देने के प्राथमिक साधन है। इस प्रकार अन्य बातों के समान होने पर युवा वर्ग के आवेदनों को प्राथमिकता दी जाती है। अन्वेषक द्वारा कुछ प्रगति होने पर अन्य एजेंसियों से बड़े अनुदान पाने के लिए आवेदन कर सकता है।
एम्स में अनेक प्रकार के अनुसंधान किए जाते हैं। एक ओर हम तंत्रिका विज्ञान, आनुवंशिकी और हार्मोग्राफी अंत:क्रिया के कम्प्यूटर उद्दीपन पर परिष्कृत अनुसंधान करते हैं, दूसरी ओर हम राष्ट्रीय स्वास्थ्य समस्याओं की रोकथाम और इलाज पर क्लिनिकल तथा जनसांख्यिकी अध्ययन करते हैं। हम उन्नत तकनीकों को लागू करने का प्रयास करते हैं जैसे डीएनए पुनर्योगज प्रौद्योगिकी, प्रतिरक्षा विज्ञान और इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी, जिससे हमारे देश के सामान्य रोगों जैसे कुष्ठ, मलेरिया, तपेदिक, डायबिटीज़, डायरिया, हिपेटाइटिस, फ्लोरोसिस और आयोडीन की कमी। हमारे पास अनेक प्रकार के स्वीकृत गर्भ निरोधकों पर केन्द्रित प्रजनन के लक्ष्य उन्मुख अनुसंधान के लिए अन्य अंतरराष्ट्रीय निधिकृत विशाल कार्यक्रम हैं। संस्थान से निकलने वाले वैज्ञानिक प्रकाशन की संख्या भी प्रति संकाय सदस्य प्रति वर्ष लगभग 2 है और इनमें से आधे से अधिक प्रकाशनों में वैज्ञानिक उद्धरण सूचकांक होते हैं। एम्स ने 1980-88 के बीच 8 वर्ष की अवधि में भारत के मेडिकल कॉलेज में पहला स्थान बनाए रखा (औसत + एसडी)। 237.5 +37.3 विज्ञान उद्धरण सूचकांक सूचीबद्ध प्रकाशन प्रति वर्ष (रेड्डी आदि नेच. मे. इंडिया 1991, 4 : 90-92)। इस 7 वर्ष की अवधि में 1987 में 94 के दौरान 1630 मेड लाइन सूचीबद्ध प्रकाशनों में भारत के चिकित्सा अनुसंधान संस्थानों में संलग्न संस्थानों में सर्वोच्च रहा (अरुणाचलम, करंट साइंस, 1997, 72 : 912-922)। एम्स में अनुसंधान की गुणवत्ता और रेंज निम्नलिखित प्रबलन क्षेत्रों के चयन से परखी जा सकती है।
डायरिया रोगों का नियंत्रण
1980 के दशक में अस्पतालों के 40 प्रतिशत बिस्तर डायरिया से होने वाली कमी के मामलों से भरे होते थे। वर्ष 1997 में भारत के अनेक हिस्सों में प्रदर्शन के लिए भी ऐसे मामलों का पता लगाना कठिन हो गया। एम्स में किए जाने वाले मूलभूत, अनुप्रयुक्त और प्रचालन अनुसंधान ने इस रुपांतरण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हाल ही में हमने दो प्रकार के सुपर ओरल रीहाइड्रेशन घोल विकसित किए हैं जो एमिनो सांद्रता पर आधारित हैं।
हम अपने देश में सामान्य रोगों के अध्ययन के लिए पुनर्योगज डीएनए प्रौद्योगिकी, प्रतिरक्षा विज्ञान और इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी जैसी उन्नत तकनीकों का उपयोग करने की कोशिश कर रहे हैं।
डब्ल्यूएचओ द्वारा इस वर्ष वैश्विक डायरिया रोग नियंत्रण कार्यक्रम में इस नए सूत्र को लाया जाएगा। एम्स में लगातार होने वाले इस रोग के इलाज के लिए एक विधि का विकास किया है, जिसे 1994 में वैश्विक डायरिया रोग नियंत्रण कार्यक्रम में उपयोग किया जाएगा। लगातार होने वाले डायरिया के 50 प्रतिशत मामलों में जिम्मेदार यह बैक्टीरिया एम्स में खोज लिया गया है और अनंतिम रूप से इसे एंटेरोएग्रीगेटिव ई. कोलाई नाम दियरा गया है। डायरिया रोग में जिंक की कमी पर अनुसंधान हेतु एम्स की भूमिका के लिए इसे टाइम पत्रिका में 1996 में अच्छी खबर के तौर पर प्रकाशित किया गया था।
डीएनए प्लॉइडी और कैंसर कोशिकाओं के सतही मार्कर की पहचान
के लिए बायोटेक लैब में जारी फ्लो साइटोमेट्री.
एम्स में रोटा वायरस को डायरिया रोग के लिए एक प्रमुख कारण बताया गया था। अब हमने जैव प्रौद्योगिकी के सहयोग से रोटा वायरस का टीका विकसित किया गया है, जिसके लिए इस वर्ष पहले चरण के परीक्षण तैयार हैं।
तपेदिक का शीघ्र और सुनिश्चित निदान
एम्स द्वारा तपेदिक के निदान के लिए एक पीसीआर जांच का विकास किया गया है। यह जांच खास तौर पर एक्स्ट्रा पल्मोनरी तपेदिक में उपयोगी है, जो नमूना प्राप्त होने के 24-48 घण्टों के अंदर इसका निदान करती है, जबकि पारंपरिक जांचों में 6-8 सप्ताह का समय लगता है।
कुष्ठ
एम्स द्वारा इस घातक रोग के प्रति किए गए अनुसंधान के योगदान इस प्रकार हैं :
- कुष्ठरोधी टीके का विकास जो कानपुर जिले में परीक्षण अधीन है।
- कुष्ठ के इलाज पर इंटरफेरॉन के परीक्षण।
- नैदानिक महत्व के जीन अभिज्ञात करने के लिए डीएनए प्रौद्योगिकी का उपयोग।
- ऐसे परीक्षणों का विकास जो इस जीवन के लिए जोखिम कारक अभिक्रिया के विकसित होने के प्रति संवेदनशील हैं।
एक व्यवहार शरीर क्रिया विज्ञान अध्ययन
मलेरिया
एम्स में आधुनिक डीएनए प्रौद्योगिकियों का उपयोग करते हुए अब भारत में इस महामारी के लिए जिम्मेदार परजीवी के विभेदों का अध्ययन करना संभव हो गया है।
एचआईवी नैदानिक जांच
एम्स द्वारा एचआईवी एंटीबॉडी का पता लगाने के लिए उच्च संवेदनशील और विशिष्ट एलाइजा प्रणाली का विकास स्वदेशी रूप से किया गया गया है। इसकी कीमत आयात किए गए जांच किट से लगभग आधी है और आयात किए गए किट की तुलना में इससे कई शुरूआती मामलों में रोग का पता लगाया जा सकता है।
एम्स द्वारा एचआईवी एंटीबॉडी का पता लगाने के लिए उच्च संवेदनशील और विशिष्ट एलाइजा प्रणाली का विकास स्वदेशी रूप से किया गया गया है। इसकी कीमत आयात किए गए जांच किट से लगभग आधी है और आयात किए गए किट की तुलना में इससे कई शुरूआती मामलों में रोग का पता लगाया जा सकता है। एम्स 1986 से एचआईवी / एड्स के लिए संदर्भ केन्द्रों में से एक और 1992 से राष्ट्रीय एचआईवी संदर्भ केन्द्र है।
यकृत रोगों के नियंत्रण हेतु अनुसंधान
एम्स में जनसांख्यिकी, क्लिनिकल और मूल भूत अनुसंधन से समस्या के परिमाण का आकलन किया गया है, जिससे स्वदेशी जांच किट का विकास और प्रत्याशी टीके तैयार किए गए हैं, हिपेटाइटिस सी वायरस के लिए रक्तदाताओं की छानबीन हेतु एक नैदानिक आकलन प्रणाली भी तैयार की गई है।
प्लेग के लिए नैदानिक जांच
एम्स दुनिया का पहला स्थान है जहां फॉर्मेलिन में स्थिर किए गए शव पर पीसीआर के उपयोग से 1994 की महामारी के दौरान प्लेग का पता लगाने और इसकी पुष्टि की विधि ज्ञात की गई थी। इसे क्लोन किया गया, क्रम ज्ञात किया गया और एफ1 पर अभिव्यक्त किया गया है तथा यर्सिनिया पेस्टिस के पीएलए जीन पर, जो प्रतिरक्षी अभिक्रियात्मक हैं। इनका उपयोग प्लेग के सिरोलॉजिकल परीक्षण हेतु किया जा रहा है।
आयोडीन कमी के विकार
एम्स द्वारा वृद्धि और विकास पर आयोडीन की कमी के प्रभावों को परिभाषित किया गया है, खास तौर पर मानव भ्रूण में मस्तिष्क विकास के लिए थाइरॉक्सिन की भूमिका। एम्स में प्रयोगशाला और क्षेत्र अध्ययनों से 1986 में भारत सरकार के सार्वभौमिक नमक आयोडीनीकरण कार्यक्रम का मार्ग प्रशस्त हुआ। आयोडीन की कमी को नियंत्रित करने के लिए हमारे योगदान भूटान, नेपाल, बंगलादेश, मालदीव, इंडोनेशिया, थाइलैंड और मध्य पूर्व के अनेक देशों तथा कई अफ्रीकी देशों तक विस्तारित किए गए हैं
नमक में आयोडीन की कमी के आकलन हेतु टाइट्रेशन विधि। यह सरल किन्तु महत्वपूर्ण जांच के सार्वभौमीकरण की सफलता सुनिश्चित करती है
एम्स में प्रयोगशाला और क्षेत्र अध्ययनों से 1986 में भारत सरकार के सार्वभौमिक नमक आयोडीनीकरण कार्यक्रम का मार्ग प्रशस्त हुआ।
गर्भ निरोधक टीका
अधिकांश अनुसंधान पिछले 25 वर्षों में एंटी ह्यूमन कोरियोनिक गोनेडोट्रॉपिन (एचसीजी) टीके के विकास के प्रति किया गया जो आरंभ में एम्स में किए गए अनुसंधान के आधार पर आगे बढ़ाया गया।
प्रतिरक्षी कोशिका विज्ञान की दृष्टि से अभिरंजित एंडोमेट्रियम के मोर्फोमेट्रिक विश्लेषण और प्राइमेट इम्प्लांटेशन जीव विज्ञान प्रयोगशाला में फोटो माइक्रोग्राफी
पोस्ट कोइटल और पोस्ट ओव्यूलेटरी गर्भ निरोध
गर्भावस्था में भ्रूण के रोपण की एंडोक्राइन और पेराक्राइन प्रक्रियाओं पर मूलभूत अनुसंधान तथा पोस्ट कोइटल, पोस्ट ओव्यूलेटरी गर्भ निरोध। हमारी प्राइमेट इम्प्लांटेशन जीव विज्ञान प्रयोगशाला में एक गैर अमेरिकी केन्द्र में गर्भ निरोध अनुसंधान और विकास कार्यक्रम को मान्यता दी है जो एंड्रू मेलन फाउंडेशन द्वारा चलाया गया है और यह रॉक फेलर फाउंडेशन द्वारा दीर्घ अवधि आधार पर समर्थित दुनिया के ऐसे 13 केन्द्रों में से भी एक है।
एंटार्कर्टिका की खोज
एम्स द्वारा एंटार्कर्टिका की खोज पर 1990 से भारतीय प्रयासों में भागीदारी की गई है। खोज अभियान पर जाने वाले सदस्यों को स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने के अलावा एम्स मानव जीव की क्रोनो बायोलॉजी, तनाव के प्रति शरीर क्रियात्मक प्रतिक्रिया और एंटार्कर्टिका के प्रतिकूल परिवेश में इसका प्रभाव तथा एंटार्कर्टिका की कठोर और अकेलेपन की परिस्थितियों में इनके निष्पादन पर अनुसंधान आयोजित किए गए हैं।
डॉ. बी. बी. दीक्षित पुस्तकालय
इस पुस्तकालय को संस्थान के प्रथम निदेशक के नाम पर दिया गया है, जहां 61423 पुस्तकें, 53547 पत्रिकाएं और 14008 रिपोर्ट जैव चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में संग्रह की गई हैं। इस पुस्तकालय में हर वर्ष 490 पत्रिकाएं और 80 समाचार पत्रिकाएं आती हैं। यह पुस्तकाय सप्ताह के सातों दिन सुबह 8 बजे से दोपहर 2 बजे तक पाठकों के लिए खुला होता है। पुस्तकालय में कम्प्यूटर सुविधा, माइक्रो फील्म, पुस्तकालय रीडर और रीडर प्रिंटर सुविधाएं हैं। यहां की समृद्ध और दक्ष सामग्री हमारे अनुसंधान की गतिविधियों को नई ऊर्जा प्रदान करती हैं।
बी. बी. दीक्षित पुस्तकालय में खास तौर पर व्यस्त क्षण