प्रो. पी. एन. टंडन
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प्रो. पी. एन. टंडन (1965-1990) वर्तमान में न्यूरोसर्जरी के अवैतनिक प्रोफेसर
''अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में न्यूरोलॉजी और न्यूरोसर्जरी विभाग मार्च 1965 में शुरू किए गए और सबसे पहले प्रोफेसर के रूप में प्रो. बलदेव और मेरी नियुक्ति हुई। डिपार्टमेंट ऑफ मेडिसिन में न्यूरोलॉजी सेवा अमेरिका के डॉ. जिम ऑस्टिन द्वारा की गई और बाद में उस समय यह डॉ. विमला विरमानी के अधीन चल रही थी। यह संस्थान आरंभ से ही न्यूरोसाइसं रिसर्च का अत्यधिक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। फिजियोलॉजी विभाग के तहत दो प्रोफेसर (प्रो. बी. के. आनंद और प्रो. ए. एस. पेंटल) देश में न्यूरोफिजियोलॉजी के अविवादित अग्रदूत हैं। यद्यपि डॉ. पेंटल एक वर्ष पूर्व ही पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट चले गए लेकिन विभाग के शेष फैकल्टी सदस्य न्यूरोफिजियोलॉजी सिर्च में लगे रहे। प्रो. केसवानी, एनाटॉमी के प्रमुख की प्राथमिक रूप से न्यूरोएनाटॉमी में रुचि थी। प्रो. जी. पी. तलवार उस समय न्यूरोकेमिस्ट्री में अनुसंधान में उत्साहजकन रूप से शामिल थे। और ऐसा नि:संदेह उनके इम्युनोलॉजी की ओर उन्मुख होने से पूर्व था। इन ताकतों को स्वीकार करते हुए इंटरनेशनल ब्रेन रिसर्च आर्गनाइलेशन (आईबीआरओ) ने अपनी शुरूआती कार्यशालाओं में से एक का आयोजन संस्थान में किया था। डॉ. श्री रामाचारी, उपनिदेशक, भारतीय चिकित्सा परिषद् यद्यपि संस्थान की फैकल्टी में शामिल नहीं थे तथापि उन्होंने कई वर्षों तक सभी न्यूरोपैथोलॉजीकल कार्य के लिए स्वतंत्र रूप से अपनी सेवाएं प्रदान की जब तक डॉ. सुबिमल राय ने पूर्ण रूप से उत्तरदायित्व नहीं संभाल लिया। जब देश के कई संस्थानों में पहले से ही क्लिनिकल न्यूरोलॉजी और न्यूरोसर्जरी विभाग से, वैलोर, मद्रास, बॉम्बे और कलकत्ता जैसे प्राचीनतम केंद्रों में न्यूरोसासइंस का ऐसा व्यापक आधार नहीं था जैसा कि संस्थान में हमारे पास था। उस समय संस्थान में तीव्र विकास और बढ़ोतरी के समग्र परिदृश्य को देखते हुए, क्लिनिकल विभागों का भी तेजी से विस्तार हुआ। संस्थान के मौजूदा स्टाफ और छात्रों के लिए यह कल्पना करना कठिन होगा कि पूर्व के वर्षों में इन सभी विभागों और यूनिटों में कितना सूक्ष्म समन्वय था। यह सब कुछ प्रो. बलदेव सिंह के व्यापक प्रभाव के कारण था जो कि हम सभी के लिए वस्तुत: एक पिता के समान थे।
क्लिनिकल विभागों के अस्तित्व में आने से पूर्व ही प्रो. बी. के. आनंद द्वारा संस्थान में ब्रेन रिसर्च सेंटर की स्थापना का विचार व्यक्त किया जा चुका था। अत:, 01 दिसंबर 1964 को डॉ. आनंद ने अपने पत्र सं. फि. / 64/1235 के द्वारा निदेशक से ब्रेन रिसर्च सेंटर जिसके केंद्र में मौजूदा आईसीएमआर न्यूरोफिजियोलॉजी यूनिट होगी, का विकास करने हेतु कदम उठाने का अनुरोध।
1968 में जब में संस्थान को सरकार की चौथी पंचवर्षीय योजना के लिए अपनी विकास योजनाएं तैयार करनी थी तो प्रो. आनंद, प्रो. बलदेव सिंह और मैंने ब्रेन रिसर्च सेंटर के प्रस्ताव को पुन: प्रस्तुत करने पर कई बार अनौपचारिक रूप से विचार विमर्श किया। यह भी उल्लेखनीय है कि, इसमें कोई आश्चर्य नहीं था कि यह प्रस्ताव न्यूरोलॉजी और न्यूरोसर्जरी हेतु कुछ प्रयोगशालाओं सहित अनुसंधान प्रयोगशालाओं के निर्माण के पक्ष में अधिक था। यद्यपि इस समय हम पर सीमित नैदानिक और ऑपरेटिव सुविधाओं के कारण क्लिनिकल कार्य का काफी बोझ था लेकिन हम लोगों ने इस आशा के साथ प्रो. आनंद का इस प्रस्ताव में समर्थन किया कि संस्थान अस्पताल जो कि शुरू किया जाना था के लिए विकाय योजना के माध्यम से रोगी देखभाल संबंधी सेवाओं को सुदृढ़ बनाया जा सके।
विकास समिति ने प्रस्ताव को सैदांतिक अनुमोदन दे दिया लेकिन वित्तीय बाधाओं के कारण कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। अंतत: संस्थान के निकाय ने कुछ स्टाफ पदों का सृजन करने पर सहमति व्यक्त की ताकि सेंटर को वित्तीय वर्ष 1970/71 तक शुरु किया जा सके/ व्यावहारिक रूप से इसके कारण भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् न्यूरोफिजियोलॉजी यूनिट के कुछ स्टाफ का आमेलन किया गया और इससे अधिक कुछ नहीं हुआ।
अंतत: जब हम नए अस्पताल में शिफ्ट हुए तो न्यूरोसर्जरी विभाग को 22 बेड दिए गए थे। हमारे पास एक ऑपरेशन थिएटर था लेकिन कोई स्पेशलाइज्ड न्यूरोसर्जिकल ऑपरेशन टेबल और गहन चिकित्सा कक्ष (आईसीयू) नहीं था। न्यूरोरेडियोलॉजी सेटअप में एक स्कल टेबल थी जिसमें एनजियोग्राफी के लिए ऑटोमेटिक चेंजर नहीं था, टोमोग्राफी के लिए न तो कोई सुविधा थी और न ही मायलोग्राफी के लिए समर्पित कोई यूनिट थी। आइसोटोप एनसिफेलोमिट्री जो कि तब विदेशों में होने वाली नियमित नैदानिक जांच थी, यहां पर मौजूद नहीं थी। हमारे पास एक ईईजी मशीन थी लेकिन ईएमजी या नर्व कंडक्शन के लिए कोई सुविधाएं नहीं थी। फिर भी देश भर से और पड़ोसी देशों से रोगी देखभाल संबंधी मांग में बढ़ोतरी हो रही थी। भर्ती और सर्जरी की प्रतीक्षा सूचियां हमारे लिए निरंतर चिंता का विषय थीं और पीडित रोगियों के लिए निराशा का। तब तक कि हम एमसीएच पाठ्यक्रम आरंभ कर चुके थे।
ऐसी ही समस्याएं कार्डियोलॉजी और कार्डियोथोरेसिक सर्जरी विभागों के समक्ष आ रही थीं। 1971 में एक दिन जब प्रो. गोपीनाथ और मैं हमारे दो थिएटर के बीच स्थित कॉमन स्क्रबिंग रुम में सर्जरी के लिए स्क्रब (हाथ इत्यािद मलकर धोना) कर रहे थे तो उन्होंने मुझे बताया कि उन्होंने कार्डियोथोरेसिक सेंटर के लिए प्रस्ताव भेजा है और बोले कि तुम ऐसा क्यों नहीं करते अन्यथा हम कभी भी प्रगति नहीं कर पाएंगे। अत:, मैंने इस मामले पर प्रो. आनंद जो अब हमारे डीन थे, से इस बारे में बात की और निदेशक, प्रो. वी. रामालिंगास्वामी को इसकी जानकारी दी। इसके पक्ष में उत्तर मिलने पर यह निर्णय लिया गया कि इस बार हमारा प्रस्ताव पहले की तरह न होकर व्यापक होना चाहिए जिसमें बेसिक न्यूरोसाइंसेज और क्लिनिकल शाखाओं का समानांतर विकास शामिल होना चाहिए। डॉ. मनचंदा और प्रो. आनंद ने बेसिक न्यूरोसाइंसेज के संबंध में प्रस्ताव तैयार किया। मैंने तत्कालीन प्रोफेसर और न्यूरोलॉजी विभाग की प्रमुख प्रो. सुमेधा पाठक के परामर्श से और प्रो. बलदेव सिंह और डॉ. बनर्जी के परामर्श से क्लिनिकल सेंटर हेतु योजना तैयार की। इस प्रकार से 16 जुलाई 1971 को डीन को इन टिप्पणियों कि ''संस्थान में वर्तमान विकास के मद्देनजर सर्वप्रथम न्यूरोफिजियोलॉजी, न्यूरोलॉजी और न्यूरोसर्जरी पर बल दिया जाएगा'' के साथ प्रारूप प्रस्ताव भेजा गया। इनको पूर्ण रूप से विकसित स्पेशियलिटीज में विकास करने हेतु केंद्र के अभिन्न अंग के रूप में निम्नलिखित के लिए केंद्रक स्थापित किए जाएंगे क्योंकि कार्मिक और वित्तीय संसाधन उपलब्ध थे। इनमें न्यूरोएनाटॉमी, न्यूरोकेमिस्ट्री, न्यूरोपैथोलॉजी शामिल थे।
प्रो. बलदेव सिंह (जो अब अवैतनिक प्रोफेसर थे) ने प्रो. बी. के. आनंद से इस प्रस्ताव पर चर्चा की जिन्होंने इस पर पूर्ण सहमति जताई और इच्छा व्यक्त कि इस पर आगे कार्य करो और स्थान, उपकरण, कार्मिक इत्यादि का ब्योरा भरें और लागत अनुमान इत्यादि निकालें। हम ब्रेन रिसर्च सेंटर का नाम बदलकर न्यूरोसाइंसेज सेंटर करने पर सहमत हो गए। हमने एक विस्तृत और काफी हद तक महत्वाकांक्षी योजना तैयार की। यद्यपि योजनाएं तैयार थीं लेकिन इसका वित्तपोषण करने का कोई स्पष्ट स्रोत नहीं था। क्या यह अभिलेखागार हेतु अन्य दस्तावेज बनने जा रहा था? यह चिंता बनी रहीं। प्रो. रामालिंगास्वामी पूरी तरह इससे सहमत थे लेकिन उन्हें इसके लिए निधियां जुटाना कठिन हो रहा था।
कई महीने बीत गए। एक दिन मैं यूं ही अपने बड़े भाई जो कि तब प्रधानमंत्री कार्यालय में संयुक्त सचिव थे, से कोई प्रगति न होने पर बढ़ती निराशा पर चर्चा कर रहा था तो उन्होंने शुरे से मुझे सावधानीपूर्वक उत्तर दिया कि; प्रकाश आधिकारिक रूप से मैं किसी ऐसी चीज में शामिल नहीं होना चाहता जिससे लगे कि मैं अपने भाई का पक्ष ले रहा हूं। हां, मैं माननीय स्वास्थ्य मंत्री श्री उमा शंकर दीक्षित के पीएस के साथ तुम्हारी बैठक करा सकता हूं। उससे पहले, अपने निदेशक से इसकी अनुमति ले लो'', निदेशक की अनुमति लेना आसान था और उसके तत्काल बाद श्री राजगोपाल के साथ एक बैठक की गई। वह न्यूरोसाइंसेज सेंटर की स्थापना के अनुरोध के प्रति काफी सहानुभूति दिखाई। बैठक के अंत में उन्होंने मुझसे कहा कि योजना अवधि के मध्य में इतनी बड़ी योजना का वित्तपोषण संभव नहीं है लेकिन ''हां, लेकिन हम अग्रिम कार्रवाई शुरू कर सकते हैं जिसे अगली योजना में औपचारिक रूप दिया जा सकता है। ''उन्होंने मुझसे वादा किया कि वे सही समय पर इसके बारे में दीक्षित जी से बात करेंगे। बैठक इस प्रोत्साहक लेकिन सचेत टिप्पणी पर समाप्त हुई कि ''मैं' कोई वादा नहीं' करता लेकिन मुझे विश्वास है कि यह वास्तविक आवश्यकता है। आप अपने लिए कुछ नहीं मांग रहे हैं? आप अपने पास आने वालों को और अधिक बेहतर सेवा प्रदान करने के इच्छुक हैं।''
मुझे आगे किसी प्रकार की त्वरित कार्रवाई की अपेक्षा नहीं थी लेकिन शाम को निदेशक से एक कॉल आने पर मुझे आश्चर्य हुआ कि स्वास्थ्य सचिव श्री के. के. दास चाहते हैं कि यूरोसाइंस सेंटर की स्थापना से संबंधित मामले को संस्थान के निकाय की शीघ्र ही होने वाली अगली बैठक को कार्यसूची में शामिल किया जाए। वह चाहते हें कि प्रस्ताव की एक प्रति उन्हें एडवांस में भेज दी जाएं''। 2 अगस्त 1972 को प्रस्ताव की एक औपचारिक प्रति श्री के. के. दास को निदेशक की ओर से भेज दी गई। संस्थान के निकाय की बैठक 12 सितंबर 1972 को हुई जिसमें संस्थान ने निर्णय लिया कि ''संस्थान ने यह विचार किया कि यह भाग्य की बात है कि न्यूरोसाइंस के कई क्षेत्रों में विशेषज्ञता संस्थान में आधारभूत और क्लिनिकल दोनों क्षेत्रों में विद्यमान है। संस्थान ने इसके विचार प्रस्तुत योजना पर यथा संभव, वांछनीय और देश के व्यापक हित में विचार किया। न्यूरोसाइंस के संबंध में विभिन्न विभागों में पहले से ही मौजूद सुदृढ़ता को देखते हुए ने एम्स में न्यूरोलॉजीकल साइंसेज सेंटर की स्थापना के प्रस्ताव को सैद्धांतिक स्वीकृति दे दी और निर्णय लिया कि इसे न केवल एम्स की पांचवी पंचवर्षीय योजना में शामिल किया जाए अपितु चौथी पंचवर्षीय योजना में भी अग्रिम कार्रवाई की संभावना का भी गंभीरता से पता लगाया जाए। तद्नुसार यह निर्णय लिया गया कि इस मामले पर वित्त समिति द्वारा विस्तृत रूप से विचार किया जाए। ''हम खुश थे लेकिन बहुत ज्यादा नहीं क्योंकि हम जानते थे कि आगे की लड़ाई बेहद मुश्किल है।
प्रस्ताव को वित्त समिति की 4 जनवरी 1973, 8 फरवरी 1973 और 5 अप्रैल 1973 को हुई बैठकों में विधिवत् प्रस्तुत किया गया और जिस बात का हमें डर था, वही हुआ वित्तीय बाधाओं को कारण निधियां उपलब्ध नहीं कराई जा सकी। नि:संदेह वास्तविक कारण यह था कि श्री के. के. दास अब सेवानिवृत्त हो चुके थे और उनके उत्तराधिकारी श्री रामचंद्रन के संस्थान के प्रति अपने विद्वेष थे, जैसा कि भविष्य की घटनाओं से पुष्टि भी हो गई।
लेकिन, वित्त समिति के औपचारिक निर्णय की प्रतीक्षा किए बगैर प्रो. रामालिंगास्वामी ने डॉ. बनवारी लाल, प्रमुख स्वास्थ्य प्रभाग, योजना आयोग को प्रस्ताव विचारार्थ भेज दिया। डॉ. लाल, प्रो. आनंद के घनिष्ठ मित्र थे और उन्होंने डॉ. लाल के प्रस्ताव की संवीक्षा किए जाने के बाद योजना आयोग में उनके साथ एक बैठक की व्यवस्था कर दी। मैं और प्रो. आनंद ने बड़ी आशाओं के साथ बैठक में गए। हमारे लिए यह आश्चर्यजनक था जब डॉ. लाल ने थोड़ी देर चर्चा के बाद कहा कि, ''बाल (बी. के. आनंद) माफी चाहता हूं, इस प्रस्ताव को इस रूप में स्वीकृति मिलने की संभावना नहीं है जिसका कारण गंभीर वित्तीय बाधाएं हैं। इसमें एक ही बात पक्ष में लगती है और वह है रोगी देखभाल।'' उन्होंने क्लिनिकल घटक के लिए बजटीय मांग सहित बजटीय मांगों को कम करने के लिए कई सुझाव दिए। हम उनके कार्यालय से निराश होकर निकले। इसके साथ साथ मुझे यह डर सता रहा था कि कहीं प्रो. आनंद परियोजना में रुचि वत्स न हो जाए और वे इसे समर्थन न दें। शायद उन्होंने मेरे विचारों को भांप लिया था, इसीलिए बाहर आते हुए अचानक रुके और बोले, ''प्रकाश, यह खराब स्थिति है कि ऐसा सब हो रहा है। हमें व्यावहारिक ढंग से सोचना चाहिए। हमें जो भी मिल सकता है, हमें ले लेना चाहिए और बाकी के लिए प्रयास करते रहना चाहिए। मैं तुम्हारा पूरा सहयोग करूंगा''। उनके स्थिति में कुछेक लोग ही इतने उदार हो सकते हैं और इससे भी बड़ी बात यह है कि बाद में हमें उनसे जो सहयोग मिलता रहा वह इन संवेदनाओं की वास्तविकता का पर्याप्त प्रमाण था। इसमें कोई संदेह नहीं कि, इस सबके लिए फिजियोलॉजी विभाग के उनके साथियों ने उनकी काफी आलोचना की।
संस्थान के निकाय के निर्णय के अनुसरण में और डॉ. लाल से प्राप्त अनौपचारिक सलाह पर हमने एक अनौपचारिक ईएफसी (व्यय वित्त समिति) ज्ञापन का प्रारूपण करने के लिए दुबारा विस्तृत कार्रवाई की। इसी बीच प्रो. गोपीनाथ ने कार्डियोथोरेसिक सेंटर के लिए इसी प्रकार का कार्य शुरू किया। यह सही है कि ये सभी कार्यकलाप अधिकांशत: एक दूसरे के साथ नियमित परामर्श करके किए गए। इन दोनों प्रस्तावों के लिए कुल मिलाकर काफी वित्तीय सहायता की आवश्यकता थी। डॉ. रामालिंगा स्वामी ने हमें सलाह दी कि हमें नए स्वास्थ्य मंत्री श्री खड़किलकर के विचार जानने चाहिए। हमारे प्रस्तावों को अलग अलग धैर्यपूर्वक सुनने के बाद उन्होंने गंभीर वित्तीय स्थिति की बात की और सलाह दी कि हमें एक समान (कॉमन) सुविधाओं के निर्माण और यथा संभव साझेदारी के द्वारा मितव्ययता का प्रयास कर सकते हैं ताकि दोनों प्रस्तावों की कुल लागत को कम किया जा सके। उन्होंने वादा किया वह संस्थान की पांचवी पंचवर्षीय योजना प्रस्तावों में इन मांगों को शामिल किया जाएगा। अत:, प्रो. गोपीनाथ और मैंने दो स्वतंत्र सेंटरों की आधारभूत विशेषण को बनाए रखते हुए एक अन्य कार्यकलाप तैयार किया यद्यपि इसमें कुछ समान क्षेत्र और सहयोगी प्रयोगशालाएं शामिल की गई थीं। 02 अगस्त 1973 को निदेशक को इस स्थिति कि, ''कठिन आर्थिक परिस्थिति के मद्देनजर हमने (प्रो. आनंद, प्रो. गोपीनाथ और प्रो. टंडन ने) परियोजनाओं को अनावश्यक नुकसान पहुंचाए बगैर इनमें कांट छांट करने के विचार की भी समीक्षा भी की है। और यही नहीं, इस समीक्षा के बाद यदि हमें कुल 350 लाख रुपए (200 लाख रुपए कार्डियोथोरेसिक के लिए और 150 लाख रुपए न्यूरोसाइंसेज सेंटर के लिए) मिलते हैं तो हम तब भी लाभकारी योगदान कर सकते हैं।योजना आयोग ने 31 अगस्त 1973 को स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रस्तावों (जिनमें एम्स के प्रस्ताव भी शामिल थे) पर विचार किया। स्वास्थ्य सचिव, श्री रामचंद्रन का संस्थान के प्रति पक्षपात बिल्कुल स्पष्ट था। उन्होंने पूरे संस्थान के लिए कुल 150 लाख रुपए का प्रस्ताव किया था। वस्तुत: इस बात पर विशेष रूप से बल दिया गया था कि मंत्रालय ''इस पक्ष में नहीं है कि सभी स्पेशिएलिटीज देश में एक ही स्थान पर केंद्रित हों। ''निदेशक के पुरजोर वकालत करने पर योजना आयोग के सदस्यों में से एक सदस्य (एक) ने यह कहा कि 'मंत्रालय ने चौथी योजना के 3.33 करोड़ के प्रावधान में से एम्स के लिए 1.50 करोड़ रुपए का प्रस्ताव किया था और चूंकि यह देश का प्रतिष्ठित संस्थान है, मंत्रालय पांचवीं पंचवर्षीय योजना में कुछ अतिरिक्त निधियां प्रदान करने की संभावनाएं खोज सकता है। दो सेंटरों के प्रस्तावों के संबंध में अंत: योजना आयोग ने सुपर स्पेशियलिटीज के विकास के लिए अलग अलग निधियां और कुल मिलाकर 236 लाख रुपए आबंटित करने का निर्णय लिया, वह भी हमारे प्रस्तावों का उल्लेख किए बगैर। यह स्वास्थ्य सचिव की हमारे प्रस्ताव को शिथिल बनाने की विशिष्ट ब्यूरोक्रेटिक सोच थी। कार्यक्रम के कार्यान्वयन से पूर्व स्वास्थ्य मंत्रालय ने देश के सभी चिकित्सा संस्थानों से 'सुपर स्पेशियलिटीज के विकास' हेतु प्रस्ताव भेजने संबंध जांच की, इस तथ्य के बावजूद कि केंद्र सरकार केवल राष्ट्रीय संस्थानों को प्रत्यक्ष रूप से वित्त पोषित कर सकती है। जैसे की आशा की गई थी, कई स्थानों से प्रस्ताव प्राप्त हुए और सबसे बढिया बात यह कि आर्थोपेडिक्स को भी सुपर - स्पेशिएलिटी माना गया। यह स्पष्ट था कि स्वास्थ्य मंत्रालय ने सचिव के निर्देशों पर सामान्य बहाने कि ''मामला विचाराधीन है'' से पूरे मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया, यद्यपि पांचवीं योजना अप्रैल 1974 से आरंभ हो चुकी थी।
एक दिन डॉ. कर्ण सिंह जो कि अब स्वास्थ्य मंत्री थे, कुछ अन्य कारणों से मुझसे मिलने की इच्छा व्यक्त की। बैठक संपन्न होने पर मैंने सेंटरों संबंधी अपने प्रस्तावों के बारे में पूछा। तब जाकर सारी असल बात सामने आई। उन्होंने स्पष्ट रूप से मुझे बताया कि सचिव उपरोल्लिखित सूचना एकत्र करने के बहाने से फाइल को दबाए बैठा है। डॉ. कर्ण सिंह ने पूरे कार्यकलाप असफलता को समझा। चूंकि सुपर स्पेशिएलिटीज़ हेतु आबंटित इतनी सीमित निधियों से कुछेक की आवश्यकताओं की पूर्ति भी संभव नहीं होगी। उन्होंने तत्काल पहल की और अगस्त 1974 में डॉ. श्रीवास्तव, महानिदेशक, स्वास्थ्य सेवाएं की अध्यक्षता में केवल केंद्रीय रूप से वित्तपोषित संस्थानों में सुपरस्पेशियलिटीज के सुदृढ़ीकरण की मौजूदा क्षमताओं और भावी संभावनाओं का आकलन करने के लिए एक समिति का गठन किया। समिति में देश भर से संबंधित क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल थे। इसने विभिन्न संस्थानों से आवश्यक जानकारी एकत्र की और अंतत: अन्य प्रस्तावों हेतु कुछ आबंटन सहित हमारे दोनों प्रस्तावों की संस्तुति करने से पूर्व प्रत्येक का साइट दौरा किया। अत: सुपर स्पेशियलिटीज के लिए आबंटित कुल 236 लाख रुपए में से एम्स के दो केंद्रों के लिए 188.37 लाख रुपए दिए गए।
26 मार्च, 1975 को सरकार द्वारा सेंटर की स्थापना हेतु औपचारिक अनुमोदन प्राप्त होने से पूर्व डॉ. शरद कुमार डीडीजी (एम) से निदेशक, एम्स को संबोधित एक पत्र प्राप्त हुआ जिसमें यह कहा गया था कि, ''सुपर स्पेशिएलिटीज का विकास'' की विशुद्ध केंद्रीय योजना के तहत् भारत सरकान ने (1) न्यूरोसर्जरी और न्यूरोलॉजी विभाग; और कार्डियोलॉजी और कार्डियोथोरेसिक सर्जरी विभागों के विकास के लिए 10 लाख रुपए स्वीकृत किए हैं...............।”
यद्यपि इस पत्र में सेंटरों के बारे में कोई उल्लेख नहीं था तथापि यह इस बात का पहला संकेत था कि सरकार ने इन दोनों सुपरस्पेशियलिटीज के विकास के लिए एम्स का चयन किया है। दो सप्ताह बाद 11 अप्रैल 1975 को अंतत: ''संस्थान में कार्डियोथोरेसिक और न्यूरोसाइंसेज सेंटर की स्थापना संबंधी विशेषज्ञ समिति की सिफारिशें प्राप्त हुई जिसके बाद दोनों प्रस्तावों के बारे में सभी अनिश्चितताएं समाप्त हो गई। न्यूरोसाइंसेज सेंटर के संबंध में इस पत्र के उदहरणों को पुन: प्रस्तुत करना आवश्यक होगा (देखें डॉ. शरद कुमार का 11 अप्रैल 1975 का पत्र)। इसके कुछ समय बाद 22 जुलाई 1975 को स्वास्थ्य मंत्रालय के एक औपचारिक पत्र और एडब्ल्यू सं. वी. 160 20/54/एमई (पीजी) के द्वारा संस्थान को पांचवी पंचवर्षीय योजना हेतु सुपर स्पेशियलिटीज़ (दोनों सेंटरों सहित) के लिए 188-37 लाख रुपए आबंटित किए गए। यह भी उल्लेखनीय है कि प्रो. गोपीनाथ और मेरे बीच पूरी समझ और संबंधित विभागों की शेष फैकल्टी के सहयोग के कारण ही हम आधारभूत उद्देश्यों की बलि चढ़ाए बगैर सरकार की ब्यूरोक्रेटिक आवश्यकताओं के अनुसार प्रस्तावों को संशोधित और पुन: प्रारूपित कर सके। विभिन्न प्रशासनिक स्तरों पर परियोजनाओं की आयोजना और कार्यान्वयन के दौरान कभी भी हमारे बीच कोई छिपी दुश्मनी, निजी अहम या अनौचित्य पूर्ण व्यक्तिगत हित आड़े नहीं आए। मेरे लिए यह विश्वास और सहयोग का दुर्लभ अनुभव है जो हमारे जैसे संस्थानों में इतना देखने में नहीं आता।
आशानुरूप इससे आगे की राह आसान नहीं थी हमें मात्र तीन लाख की निधि की पहली किस्त के लिए मार्च 1976 तक प्रतीक्षा करनी थी। एक स्तर पर स्वास्थ्य मंत्रालय के वित्तीय सलाहकार ने बिना किसी औचित्य के पांचवीं योजना में कुल आबंटन को 40 लाख तक घटा दिया क्योंकि संस्थान के प्रति उनका मुख्य वैमनस्य यह था कि संस्थान ने फोयर (पार्श्वकक्ष) में काले मार्बल कालम लगाकर निधियों का दुरुपयोग किया है'', शायद उन्हें इस बात की चिंता थी कि हम निधि कालो मार्बल कॉलमों पर व्यर्थ कर देंगे। जब डॉ. गोपीनाथ और मैं उन्हें किसी स्पष्टीकरण या आश्वासन से संतुष्ट नहीं कर पाए तो हमें वित्त मंत्री (श्री पी सुब्रहमण्यम के कार्यालय) और योजना आयोग के उपाध्यक्ष श्री पी. एन. हक्सर के पास जाना पड़ा। ये दोनों देश के जाने माने सबसे प्रगतिशील नीति निर्माता है। मैं आपको जल्दी से यह भी बता दूं कि प्रो. गोपीनाथ और मैं उनसे हमारे निदेशक की अनुमति से मिले।
जुलाई 1976 में संपदा समिति ने मेसर्स प्रधान घोष और एसोसिएट्स को आर्किटेक्ट के रूप में औपचारिक रूप से नियुक्त कर दिया। लेकिन, 1976 और 1978 के बीच बजट आबंटन कम किए जाने और भवन की बढती लागत के कारण भवन योजना में बार बार संशोधन करने पड़े। अंतत:, 14 अप्रैल 1978 को भारत के राष्ट्रपति श्री नीलम संजीव रेड्डी ने दोनों सेंटरों की नींव रखी। अपने स्वागत भाषण में डॉ. रामालिंगास्वामी ने कहा कि, ''सेंटरों के बारे में हमारा विज़न यह है कि ये दोनों जन सेवा के केंद्र होने के साथ साथ उच्च शिक्षण के केंद्र भी होंगे।'' उनका मानना है कि रोगी और उनकी आवश्यकताएं सबसे पहले हैं और बाकी सब कुछ इसका अनुषंगी और सहयोगी है। उन्होंने कहा कि, ''सेंटर की सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण आवश्यकता है समाज को इसकी जरूरत होना। ''प्रसिद्ध अर्थशास्त्री फ्रांसिस डिलेज़ी को उद्धत करते हुए उन्होंने कहा कि, ''संस्थान का उद्देश्य दीर्घकालिक प्रचालनों हेतु आवश्यक स्थिरता प्रदान करता है। साथ ही, संस्थान परिवर्तन के प्रति अनुकूल बनाने में सक्षम होने चाहिए। हमें आशा है कि इन सेंटरों में स्थिरता, अनुकूलनता और निरंतरता का उचित संतुलन होगा।'' राष्ट्रपति जी ने अपने संबोधन में इन सेंटरों की स्थापना पर प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि ''हमारी तात्कालिक आवश्यकता प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल है जिसे हमें अपनी पूर्ण ऊर्जा और सभी संसाधनों के द्वारा कार्यान्वित करना चाहिए।'' उन्होंने कहा कि, ‘’हम जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर स्वास्थ्य देखभाल अधिक उन्नत स्तरों कि स्थापना और उनमें सुधार की भी अनदेखी नहीं कर सकते। हमें, हमारे जैसे एक बड़े देश में कुछेक उत्कृष्टता केंद्रों की आवश्यकता है जहां पर सर्वाधिक बेहतर स्तर की देखभाल प्रदान की जा सके; स्पेशियलिस्टों और शोधकर्ताओं को प्रशिक्षण दिया जा सके और उचित प्रबंधन हेतु सर्वाधिक जटिल समस्याओं को रेफर किया जा सके।‘’ उनके लिए ‘’यह ऐसा करो या मत करो वाली बात नहीं थी अपितु वह चाहते थे स्वास्थ्य देखभाल के इन विभिन्न स्तरों के विकास में समुचित संतुलन बनाया जाए।‘’ वह वैज्ञानिक समुदाय के प्रति भी समान रूप से चिंतित थे कि उन्हें न केवल हमारी वर्तमान समस्याओं के समाधान के लिए अपितु भविष्य की बदलती प्रवृत्तियों और आवश्यकताओं के अनुकूल बनने के लिए उचित नवाचारी विधियों की खोज करने व उनके अनुरूप बनने में सक्षम होना चाहिए।‘’ मैंने भाषणों से ये उद्धरण इसलिए दिए हैं क्योंकि मेरा मानना है कि जब तक हम इन आदर्शों का पालन करेंगे सेंटर सरकार द्वारा प्रदत्त इन प्रचुर संसाधनों को न्यायसंगत सिद्ध करता रहेगा और इसे लोगों का विश्वास मिलता रहेगा।
पांच वर्ष बाद, मार्च 1983 में, न्यूरोलॉजी, न्यूरोसर्जरी (और कार्डियोलॉजी और कार्डियोथोरेसिक सर्जरी भी) नए भवन में आ गए। शेष कार्य चलता रहा। जैसे-जैसे कार्य आगे बढ़ा हम पूर्ण होते हुए क्षेत्रों में कब्जा करते गए, जुलाई 1984 तक बेसमेंट, ओपीडी, रिसिविंग स्टेशन, नॉनवेसिव लैबोरेटरिज, रेडियोलॉजी विंग, 8 ऑपरेशन थिएटर (न्यूरो 3, कार्डियक 4, कॉमन 1) तथा आईसीयू और पोस्ट ऑपरेटिव वार्ड बनकर तैयार हो चुके थे। 1988-89 तक ही सेंटर नए भवन में पूरी तरह से कार्य कर पाया। इस समय इस परिसर में न्यूरोसाइंसेज सेंटर में कुल 180 बेड, 3 पूर्णत: सुसज्जित ऑपरेशन थिएटर, 30 बेड वाला आईसीयू, इंटरमीडिएट केयर वार्डस, सर्वसुविधा यूक्त न्यूरोरेडियोलॉजी, न्यूरोएनेस्थीसिया विभाग थे। फैकल्टी और सहायक स्टाफ का कार्यालय, न्यूरोकेमिस्ट्री लैबोरेटरी पुराने भवन में ही चलते रहे और परस्पर करार के तहत न्यूरोपैथोलॉजी अभी भी पैथोलॉजी के मूल विभाग में ही है। इसके सेंटर के शुरू होने पहले हमारे पास उपलब्ध सुविधाओं से तुलना की जा सकती है। आधे अधूरे आईसीयू सहित न्यूरोलॉजी और न्यूरोसर्जरी हेतु कुल बेडों की संख्या केवल 72 थी जो कि पुराने अस्पताल के विभिन्न भागों में स्थित थे।
न्यूरोसर्जरी हेतु केवल एक ही समर्पित ऑपरेशन थिएटर था और दूसरा कार्डियोथोरेसिक विभाग के साथ साझा था जिसका हम सप्ताह में तीन दिन उपयोग करते थे। न्यूरोसर्जरी की फैकल्टी में चार सदस्य थे। मुझे बताया गया कि न्यूरोलॉजी, न्यूरोरेडियोलॉजी, न्यूरोएनेस्थीसिया, न्यूरोपैथोलॉजी, न्यूरोकेमिस्ट्री इत्यादि के विकास के बारे में अलग अलग विवरण होंगे अत: मुझे स्वयं को केवल न्यूरोसर्जरी की समीक्षा के शेष भाग तक सीमित रखना होगा। यही नहीं यह भी उल्लेखनीय है कि एक बार सेंटर के निर्माण की योजना अनुमोदित होने पर इस पर पूर्णत: काबिज़ होने से पहले की अवधि में हमें समग्र सुविधाओं और स्टाफ की संख्या को प्रगतिशील ढंग से बढ़ाने की अनुमति दे दी गई ताकि गुणवत्ता में सुधार किया जा सके और सभी कार्यकलापों रोगी देखभाल सेवा और विशेष रूप से शिक्षा के परिणाम (आउटपुट) को बढ़ाया जा सके। अब की तरह की शोध हेतु निधियों को अनुदान देने वाली एजेंसियों से प्रतिस्पर्धी आधार पर प्राप्त करना होता था। इस अवधि के दौरान हमें स्वीडिश इंटरनेशनल डेवलपमेंट एजेंसी (एसआईडीए) से उदारतापूर्वक अनुदान प्राप्त हुआ जिसके कारण हम ऑपरेशन थिएटरों और आईसीयू सहित अन्य नैदानिक और क्लिनिकल सुविधाओं का भी आधुनिकीकरण कर सके। इस अनुदान के तहत् ही देश में पहला सीटी स्कैन संस्थापित हुआ था। यह भी मात्र संयोग नहीं है कि इसका उद्घाटन भारत के राष्ट्रपति द्वारा उसी दिन किया गया था जिस दिन सेंटरों की नींव रखी गई थी।
जहां तक न्यूरोसर्जिकल सेवाओं के विकास का संबंध है, हमारे कार्य के पहले पूरे वर्ष के दौरान अर्थात् 1966 में हमने 140 रोगी भर्ती किए। 540 रोगी ओपीडी में आए तथा हमने 111 बड़ी और 89 छोटी शल्यक्रियाएं की। यह उल्लेखनीय है कि उस समय हमारे कई रोगियों को इमरजेंसी वार्ड में ही भर्ती किया जाता था उनका ऑपरेशन किया जाता था और वहीं से उन्हें डिस्चार्ज कर दिया जाता था। पांच वर्ष बाद 1971 में यह संख्या इस प्रकार थी, 422 भर्ती किए गए रोगी, 1044 ओपीडी में आए और 535 (303 बड़े और 232 छोटे) ऑपरेशन किए गए। 1976 वह वर्ष है जब हमें सेंटर के लिए पहला संकेतात्मक (टोकन) अनुदान मिला और इन वर्ष में हमने 1094 रोगी भर्ती किए, ओपीडी में 3784 मरीज (1960 नए और 1824 पुराने) देखे और 520 बड़े तथा 785 छोटे सर्जिकल ऑपरेशन किए। यह भी स्मरणीय है कि उस समय न्यूरोरेडियोलॉजीकल अन्वेषण, न्यूमोएनसिफेलोग्राफी वेंट्रिकुलोग्राफी, एंजियोग्राफी और मायलोग्राफी क्लिनिकल टीम द्वारा ही की जाती थी और इन्हें छोटे ऑपरेशनों में शामिल किया जाता था। 1986 में सेंटर में जाने से पूर्व 1898 रोगियों को भर्ती किया गया, 11225 (3406 नए और 7918 पुराने) रोगियों को ओपीडी में देखा गया और 735 और 257 बड़े या छोटे ऑपरेशन किए गए। शुरू में 1965 में केवल दो संकाय सदस्य डॉ. बनर्जी और मैं थे तथा बाद में एक और लेक्चर डॉ. बी. प्रकाश आ गए। इसके बाद 1974 में डॉ. आर भाटिया लेक्चर के रूप में आए। सेंटर के अस्तित्व में आने के बाद न्यूरोसर्जरी विभाग में संकाय के पहले सदस्य 1979 में डॉ. बनर्जी बने, जिन्होंने प्रोफेसर के रूप में कार्यभार ग्रहण किया था। इस संबंध में उस समय जो भावना होती थी, उसके बारे में बताने के लिए एक बाकया बताना चाहुंगा जिसके बारे में कम ही लोग जानते हैं। जब हमें सेंटर के लिए प्रोफेसर के पहले पद की संस्वीकृति मिली तो, मैं यह पद डॉ. बैनर्जी के लिए चाहता था। जिस दिन इस मामले को अकादमिक समिति में अंतिम रूप दिया जाना था, मैं अस्वस्थ का और मैंने डॉ. बैनर्जी से बैठक में भाग लेने का अनुरोध किया और उन्हें संक्षेप में अपनी योजना बताई। उन्होंने तत्काल उत्तर दिया कि यह न्यूरोपैथोलॉजी को दिया जाना चाहिए।‘’ ‘’डॉ. सुबीमल राम को मुझसे पहले अवसर दिया जाना चाहिए।, ‘’तत्पश्चात् डॉ. बी. एस. मेहता ने 1981 में लेक्चरर के रूप में कार्यभार ग्रहण किया और उसके बाद 1983 में डॉ. ए. के. महापात्रा आए। इसी बीच 1980 में डॉ. बी. प्रकाश जी. बी. पंत हॉस्पीटल चले गए। इस प्रकार 1988 में सेंटर के पूर्णरूपेण आरंभ होन के बाद भी विभाग में कुल 05 संकाय सदस्य थे; जिन्होंने निरंतर बढ़ते सेवा-भार, जैसा कि ऊपर दिए गए आंकड़े दर्शाते हैं, को संभाला।
p>शिक्षासेवाकालीन एनसीएच के पूर्ण पाठ्यक्रम (पोस्ट एमएस (सर्जरी) हेतु 3 वर्ष तथा एमबीबीएस पश्चात् सीधे 5+1 वर्ष) के अलावा विभाग स्नातक शिक्षा दे रहा है तथा पीएचडी कार्यक्रम हेतु बेसिक साइंस डिपार्टमेंट के साथ सहयोग कर रहा है। 1968 में हमारे पहले प्रशिक्षु को एमसीएच डिग्री मिली और 1988 तक 28 व्यक्तियों ने अपनी पोस्टग्रेजुएट डिग्री प्राप्त कर ली थी। 1988 से अब तक अतिरिक्त 3.1 भी उत्तीर्ण हो चुके हैं। इनमें से अधिकांश देश में सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। उनमें से कई दिल्ली, वाराणसी, श्रीनगर, बंगलौर, कटक और हैदराबाद में अपने विभागों के प्रमुख बने हैं और उस उद्देश्य की पूर्ति कर रहे हैं जिसके लिए सेंटर का निर्माण किया गया था। विभाग आरंभ से ही आंतरिक और बाह्य सीएमई कार्यक्रमों में सक्रियता कार्यरत है। हाल ही के विकासों जैसे सीटी स्कैनिंग, माइक्रोसर्जरी, न्यूरल ट्रांसप्लांटेशन, वास्कुलर सर्जरी, स्कल बेस सर्जरी इत्यादि पर नियमित रूप से लघु अवधि प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। क्लिनिशियन के लिए न्यूरोबायोलॉजी पर वार्षिक पाठ्यक्रम आयोजित किया गया (एम्स में 04 और निम्हैन्स, बंगलौर में 01)। समय समय पर अंतरराष्ट्रीय फैकल्टी की सहायता से राष्ट्रीय स्तर की व्यावहारिक कार्यशालाओं का आयोजन किया गया जैसे माइक्रोन्यूरोसर्जरी, स्कल बेस सर्जरी, न्यूरल ट्रांसप्लांटेशन इत्यादि पर। देश में अपनी ही तरह की पहली माइक्रोन्यूरोसर्जिकल लैब की स्थापना की गई ताकि न केवल न्यूरोसर्जन को अपितु देश भर के अन्य स्पेशियलिटीज़ को भी माइक्रोसर्जिकल तकनीकों में प्रशिक्षण दिया जा सके। एनाटॉमी विभाग के सहयोग से पहली नेशनल न्यूरल ट्रांसप्लांटेशन फैसिलिटी की स्थापना की गई। 1980 में देश में न्यूरोसर्जरी की पहली पाठ्यपुस्तक मद्रास न्यूरोलॉजीकल इंस्टीट्यूट और एम्स के संयुक्त प्रयास का परिणाम थी। इसको 1996 में पूरी तरह से संशोधित और अद्यतन किया गया है। एनॉटामी विभाग, एम्स के सहयोग से ‘लेक्चर्स इन न्यूरोबायोलॉजी’ पर चार निबंध प्रकाशित किए गए। फैकल्टी ने ट्रॉपिकल न्यूरोलॉजी, हैंडबुक ऑफ न्यूरोलॉजी और टेक्नीक्स इन न्यूरोसर्जरी सहित कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पाठ्यपुस्तकों में योगदान दिया है।
अनुसंधान
एम्स ने ज्ञान के क्षेत्रों का विकास करने हेतु विशिष्ट वातावरण प्रदान किया। न्यूरोसर्जरी विभाग ने इस प्रयास में पूरी तरह से भाग लिया। विभाग के शोध योगदानों के मुख्य क्षेत्रों जिन में संस्थान के और बाहर के अन्य विभागों का सहयोग शामिल था निम्नलिखित हैं :-
- सिर की चोट : एपिडेमियोलॉजी, इंटराक्रेनियल हिमेटोमास और टेम्पोरल लोब लीज़न्स, ब्रेनस्टेम इंजुकीज़, बढ़ते खोपड़ी के फ्रैक्चर, गंभीर सिर के चोट के परिणाम। इन अध्ययनों में इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोलॉजी, मद्रास और यूनिवर्सिटी ऑफ चारलोट्सविले, वर्जीनिया, यूएसए के साथ सहयोगात्मक जांच शामिल थी। संस्थान में ईएनटी, ऑफ्थेलमोलॉजी पैथोलॉजी, रेडियोलॉजी विभाग और मेडिकल जूरिस प्रूडेंस’ विभिन्न स्तरों की जांच का भाग थे।
- सीएनएस ट्यूबरकुलोसिस एक्सपेरिमेंटल स्टडीज़ ऑन पैथोजेनेसिस, क्लिनिकल आविर्भाव, इटियोलॉजी और पोस्ट मेनिंनजाइटिक सिक्विले, न्यूरोइमेजिंग, चिकित्सीय विधियों का मूल्यांकन (ये अध्ययन माइक्रोब बायोलॉजी, पैथोलॉजी और रेडियोलॉजी और न्यूक्लियर मेडिसिन विभागों के सहयोग से किए गए।
- ब्रेन एब्सेसेज : इटियोपैथोलॉजी, क्लिनिकल अविर्भाव, सायनोटिक हार्ट डिजीज में ब्रेन एबसेस, सबड्युरल एब्सेसेज, प्रबंधन कार्यनीतियां।
- . सिस्टिसरकोसिस : इसके क्लिनिकल अविर्भाव, नैदानिक दुविधाएं, सीटी इमेजिंग, सर्जरी की भूमिका।
- ब्रैक्यिल प्लेक्सस, इंजरीज़ : विश्व की सबसे बड़ी जांच की सीरीज में से एक जिसमें नैदानिक समस्याएं, सर्जिकल प्रक्रियाओं का मूल्यांकन शामिल था। ये अध्ययन न्यूरोलॉजी विभाग के सहयोग से किए गए।
- ऑप्टिक नर्व इंजरीज एक दशक से भी अधिक के लिए संदर्शी जांच का विषय है। ईएनटी विभाग के सहयोग से अंतरराष्ट्रीय बहुकेंद्रक अध्ययन के रूप में क्लिनिकल आविर्भाव, दृश्य-जनित संभावनाएं, सर्जरी की भूमिका का मूल्यांकन किया गया।
- विभिन्न प्रबंधन कार्यनीतियों का आकलन करने हेतु अध्ययन तथा सब अरक नायड हैमरेज और विशेष रूप से एपिडेमियोलॉजीकल इंटराक्रेनियल एन्यूरिज्म, इटियोपैथोलॉजीकल इंटराक्रेनियल एन्यूरिज्म, इटियोपैथोलॉजीकल जांच। इन अध्ययनों को बहुकेंद्रक राष्ट्रीय अध्ययन मल्टीसेंट्रिक नेशनल स्टडी के भाग के रूप में किया गया जिसने भारत में इंटराक्रेनियल एन्यूरिज्म की दुर्लभता के विद्यमान दृष्टिकोण के भ्रम को सिद्ध किया।
- पिट्युटिरी ट्यूमर्स : इम्युनेहिस्टोकेमिकल क्लासिफिकेशन, कोरिलेशन ऑफ क्लिनिकल – पैथोलॉजीकल एण्ड हार्मोनल प्रोफाइल, टिश्यू कल्चर स्टडीज़ (ये अध्ययन एंडोक्राइनोलॉजी और न्यूरोपैथोलॉजी विभाग के सहयोग से किए गए। इनमें से अधिकांश अध्ययन ट्रांस स्फीनायड सर्जरी के बाद भारत में ईएनटी विभाग के सहयोग से पहली बार शुरू किए गए।
- ग्लियोमास : ये पैथोलॉजी में कई जांचों क्लासीफिकेशन, विकास संभावनाओं का मूलयांकन, पूर्वानुमान कारक इत्यादि का विषय थे। डामिनेंट हेमिस्फेयर के ग्लियोमास की सर्जरी पर सर्वाधिक ध्यान दिया गया। न्यूरोपैथोलॉजी विभाग द्वारा ईएम, इम्युनोहिस्टोकेमिस्ट्री, इन-वीवो और इन-विट्रो लेबलिंग स्टडीज, टिश्यू कल्चर और मॉलीक्यूलर मार्कर्स सहित कई जांच की गई।
- इंटराक्रेनियल हाइपरटेंशन संबंधी प्रयोगात्मक अध्ययनों ने बायोमैकेनिकल मॉडल के आधार पर पैथो-फिजियोलॉजीकल मैकेनिज्म को विस्तार से बताया। ये अध्ययन एम्स के फिजियोलॉजी विभाग और बायोमेडिकल इंजीनियरिंग विभाग, आईआईटी, दिल्ली के सहयोग से किए गए। फार्माकोलॉजी विभाग के साथ अन्य जांचों में बढ़े हुए आईसीपी में पलमुनरी इडेमा के पैथोजेनेटिक मैकेनिज्म के बारे में बताया गया।
- एक्सपेरिमेंटल न्यूरल ट्रांसप्लांटेशन एनाटॉमी विभाग के सहयोग से नेशनल फीटल न्यूरल ट्रांसप्लांटेशन यूनिट (विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा समर्थित) की स्थापना की गई। कई पत्रों के माध्यम से मौलिक योगदान दिया गया। उपर्युक्त विवरण से यह सिद्ध होता है कि काफी कुछ प्राप्त कर लिया गया है और नि:संदेह काफी कुछ किए जाने की आवश्यकता है। मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से लाभकारी अनुभव और अत्यधिक संतुष्टि का साधन रहा है इसमें न केवल सेंटर का वास्तविक विकास हुआ अपितु ऐसी टीम का स्नेह और मित्रता प्राप्त हुई जिसके कारण यह वास्तव में संभव हो सका। मुझे केवल एक बात का खेद है कि हम न्यूरोसाइंस सेंटर के अभिन्न अंग के रूप में बेसिक न्यूरोसाइंसेज का समानांतर विकास करने में सफल नहीं हुए। इन अलग अलग शाखाओं ने संस्थान में उत्कृष्ट योगदान दिया है। यह कहा जाता है कि कोई संस्थान एक व्यक्ति का स्वयं का विस्तार होता है। यदि इस कहावत को कोई झुठला सकता है तो वह न्यूरोसाइंस सेंटर है। कई व्यक्तियों ने इसका सपना देखा, कई लोगों ने अपने से महान इस कार्य के लिए अपने अहम को छोड़कर स्वार्थ रहित, समर्पित सेवाएं देकर इसको पोषित किया और एक टीम के रूप में कार्य किया जिसका विश्वभर में समानांतर ढूंढना कठिन है। गीता के मर्म के अनुरूप उनकी एकमात्र चिंता कम था, पुरस्कार नहीं। उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना हेतु इससे बड़ा बलिदान कोई नहीं हो सकता। भावी पीढ़ी ही यह निर्णय करेगी कि हम सफल हुए या नहीं लेकिन वे इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि हमने प्रयास नहीं किया। यहां देश के अन्य ऐसे संस्थानों की तरह नहीं है और संस्थान की शुरूआत करने वालों के जाने के बाद भी सेंटर ने ऊंचाइयों को छूने की अपनी यात्रा को जारी रखा है जो कि अनुवर्तियों के कथन से स्पष्ट हो जाएगा। मुझे आशा है और में प्रार्थना करता हूं कि यह सेंटर अपनी स्थापना के उद्देश्यों पर सदैव खरा उतरेगा। ‘’अंतिम विश्लेषण में, वास्तविक रूप से जन सेवा और उच्च अधिगम के उत्कृष्ट सेंटर के लिए न तो बजट और न ही स्टाफ पद आवश्यक है। इसके लिए विद्वान, कल्पनाशील, मानववादी, निष्ठावान और समर्पित फैकल्टी और छात्र अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। सेंटर के पास यह है और मैं कामना करता हूं कि वे आने वाले वर्षों में और बुलंदियों को छूए।
एम्स और सफदरजंग परिसर में न्यूरोलॉजी और न्यूरोसर्जरी सेंटर की स्थापना के बारे में समिति की सिफारिशें
यह सेंटर निम्न कारणों से चुना गया है :-
- यहां पर कार्यरत बेहतरीन स्टाफ तथा रोगी देखभाल, शिक्षण और शोध का बहुत ही अच्छा रिकॉर्ड होना विशेष रूप से एम्स में।
- बेसिक साइंसेज के सहयोगी विभागों का होना जो कि पूर्ण सुविधा युक्त हैं और जो प्रस्तावित न्यूरोसाइंसेज सेंटर के प्रत्येक अनुषंगी विभाग हेतु केंद्रक भूमिका निभा सकते हैं।
- निकट सफदरजंग अस्पताल में न्यूरोलॉजी विभाग का होना जो कि इस प्रस्तावित सेंटर हेतु ट्रॉमा और इमरजेंसी यूनिट के रूप में कार्यकर सकता है।
इस प्रस्तावित न्यूरो सेंटर की आवश्यकताएं परिशिष्ट – एक में दी गई हैं और ये किफायती और न्यूनतम हैं।
एम्स और सफदरजंग अस्पताल के न्यूरोलॉजी परिसर को न्यूरोसेंटर बनाने की सिफारिश निम्नलिखित आवश्यकताओं के आधार पर की गई है :
(क) एम्स के एनाटॉमी, फिजियोलॉजी, बायोकेमिस्ट्री, पैथोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी, एंडोक्राइनोलॉजी, जेनेटिक्स, इम्युनोलॉजी और एक्सपेरिमेंटल मेडिसिन और सर्जरी विभागों का उत्साहपूर्ण सहयोग तथा न्यूरो एनाटॉमी, न्यूरो फिजियोलॉजी, न्यूरो – पैथोलॉजी, न्यूरो – केमिस्ट्री इत्यादि जैसे विशेष पहलुओं के विकास के लिए आवश्यक स्टाफ और उपकरण उपलब्ध कराने की उनकी क्षमता अर्थात संसाधनों की उपलब्धता पहले से ही थी। जैसे जैसे इस न्यूरोसेंटर का विकास होगा और राष्ट्रीय संसाधनों में सुधार होगा, इन सब-स्पेशिएलिटीज में से प्रत्येक नए निर्मित होने वाले भवन में अपना अनुभाग बना सकता है।
(ख) बेडों की संख्या बढ़ाने के स्थान की आवश्यकता होगी जो वर्तमान भवन में उपलब्ध नहीं है। न्यूरोसेंटर बनाने के लिए भूमि चिन्हित कर दी गई है और यह कार्य प्राथमिकता आधार पर शुरू किया जाएगा।
(ग) भवन के तैयार होने तक शेष सिफारिशों को तत्काल प्रभाव से लागू किया जाए।न्यूरोलॉजी और न्यूरोसर्जरी सेंटर जारी
समिति ने आगे पाया है कि :-
1) सफदरजंग अस्पताल की इमरजेंसी और हेड इंजरी सेवा का न्यूरोसेंटर के साथ समन्वय बनाने के निम्न द्वारा न्यूनतम व्यवस्था की जाए :- क) प्रत्येक संस्थान के स्टाफ के लिए अन्य में परस्पर और उचित पदनाम तय किए जाएं; और ख) न्यूरोसेंटर के मिश्रित स्टाफ द्वारा इन बेडों का पूर्ण क्लिनिकल कवरेज करने की और परस्पर उत्तरदायित्व सोंपे जाएं।
2) सफदरजंग अस्पताल में उपलब्ध एक माइमर एक्स-रे मशीन सहित पहले से मौजूद न्यूरोरेडियोलॉजीकल सुविधाएं इन न्यूरो सेंटर को तत्काल उपलब्ध कराई जाएं और संस्तुत न्यूरोरेडियोलॉजी स्टाफ के लिए शीघ्र स्वीकृति दी जाए।
3) चूंकि देश में कुछ ही अनुभवी न्यूरो-पैथोलॉजिस्ट्स हैं, अत: समिति पुरजोर सिफारिश करती है डॉ. एस. श्रीरामाचारी, निदेशक, रजिस्ट्री ऑफ पैथोलॉजी, नई दिल्ली की इस न्यूरो सेंटर न्यूरो – पैथोलॉजी के मानद प्रोफेसर के रूप में तत्काल नियुक्ति की जाए।
4) एम्स में मूल विभाग से सहयोग कर रहे विभिन्न सब-सेक्शन, धीरे धीरे सब-स्पेशिएलिटी के पूर्ण विभाग जैसे – न्यूरो – पैथोलॉजी, न्यूरो – फिजियोलॉजी, न्यूरो – केमिस्ट्री, न्यूरो – साइकोलॉजी इत्यादि बने जाने चाहिए।