संकायसदस्यों ने कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त एजेंसियों जैसे भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् (आईसीएमआर), स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, वित्त मंत्रालय, वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (सीएसआईआर), विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), विश्व स्वास्थ्य संगठन (भारत), विश्व स्वास्थ्य संगठन (जिनेवा) और यूनाइटेड नेशंस ऑफिस ऑफ ड्रग्स एंड क्राइम (यूएलओडीसी) द्वारा वित्त पोषित कई अनुसंधान परियोजनाएं संपन्न की हैं। केंद्र में स्वास्थ्य क्षति परीक्षण और शरीर के तरल पदार्थों में स्वापक सेवन की जांच करने, पूर्व नैदानिक प्रयोगशाला प्रयोग और पशुओं में स्वापक सेवन संबंधी व्यावहारिक औषध प्रभाव संबंधी परीक्षण करने हेतु कई बेहतरीन उपकरण उपलब्ध हैं। कुछ अनुसंधान परियोजनाएं केंद्र द्वारा प्रकाशित की गई है।
कुछ महत्वपूर्ण अनुसंधान और सार्वजनिक स्वास्थ्य परियोजनाओं की सूची नीचे दी गई है।
कुछ चालू परियोजनाएं
- मादक पदार्थ सेवन संबंधी विकारों के उपचार के संबंध में चिकित्सा कार्मिकों का राष्ट्रीय क्षमता निर्माण। एनएफडीएसी, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित (अंजू धवन, यातन पाल सिंह बल्हारा)।
परियोजना में देश के 500 से अधिक जिला अस्पतालों के डॉक्टरों को प्रशिक्षण दिया जाता है। एनडीडीटीसी, एम्स के साथ इस उपक्रम में सहयोग करने वाले अन्य संस्थान निम्नवत् हैं :-
· सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ साइकिएट्री(सीआईपी), रांची
· गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज (जीएमसी), चंडीगढ़
· केईएम हॉस्पिटल, मुंबई
· नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एण्ड न्यूरोसाइंसेस (निमहांस), बेंगलुरू
· रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, इम्फाल
यूएनओडीसी आरओएसए के सहयोग से और एनडीडीबीसी एम्स के समग्र समन्वय से मीथेडोन अनुरक्षण उपचार (एमएमटी) की व्यवहार्यता और प्रभाविता का अन्वेषण करने संबंधी बहु – स्थलीय परियोजना चल रही है। इस अध्ययन में सहयोग करने वाले अन्य संस्थान निम्नवत् हैं -
· केईएम अस्पताल, मुंबई
· रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (आरआईएमएस), इम्फाल, मणिपुर
· सिविल अस्पताल, कपूरथला, पंजाब
· सिविल अस्पताल, भटिंडा, पंजाब
- भारत में एल्कोहल सेवन की समस्या से संबंधित वेब पोर्टल का विकास https://www.alcoholwebindia.in/ (अतुल अंबेडकर, यातन पाल सिंह बल्हारा), विश्व स्वास्थ्य संगठन (जिनेवा) द्वारा वित्त पोषित (2010 – जारी)।
- पोस्ट मार्केटिंग सर्विलेंस ऑफ मेथाडोन इन इंडिया (रूसन फार्मास्युटिकल्स द्वारा वित्तपोषित बहु स्थल परियोजना) अतुल अम्बेडकर, आर जैन, ए धवन, ए चोपड़ा, एच सेठी 2012 – जारी)।
- चूहों में ओपिएट पर नैलबुफिन का प्रभाव : व्यावहारिक, जैवरासायनिक और आण्विक अध्ययन, (राका जैन, टी. एस. रॉय, अंजू धवन), परियोजना भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् द्वारा वित्त पोषित है (2012-से जारी)
- वाई. पी. एस. बल्हारा, आर. जैन ऑपियॉइड और एल्कोहल निर्भरता सिंड्रोम सहित रोगियों के बीच मेटाबोलिक के व्यापकता का तुलनात्मक अध्ययना एम्स, नई दिल्ली द्वारा निधिकरण (2013 – जारी)।
- नोडल रीजनल टेक्नीकल ट्रेनिंग सेंटर (नोडल आरटीटीसी) – उत्तर भारत में आईडीयू – लक्षित उपायों (टीआई) में कार्यरत डॉक्टरों और नर्सों का राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) और इमैन्युअल अस्पताल एसोसिएशन की परियोजना प्रबंधन एकक (पीएमयू) के सहयोग से प्रशिक्षण देना। एड्स, टीबी और मलेरिया हेतु वैश्विक निधि के भाग के रूप में, राउंड 9 एचआईवी-आईडीयू अनुदान 'हिफाज़त' (अतुलअम्बेडकर, रविंद्रराव) (2012- से चालू)।
उपरोल्लिखित परियोजना के भाग के रूप में, एनडीडीटीसी को नोडल आरटीटीसी के रूप में कार्य करने हेतु नामनिर्दिष्ट किया गया है। परियोजना के तहत विभिन्न गतिविधियां इस प्रकार हैं :
· अन्य आरटीटीसी (केईएम अस्पताल, मुंबई सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ साइकिएट्री (सीआईपी), रांची, रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (आरआईएमएस), इम्फाल, एनईआईजीआरआईएमएस, शिलांग, निम्हांस, बैंगलोर, एएमसी, डिब्रुगढ़, केजीएमयू, लखनऊ का समन्वय और मार्गदर्शन (हैंड होल्डिंग)।
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- उत्तरी भारतीय राज्यों में नाको के तहत कार्यरत आईडीयू – टीआईएस में कार्य कर रहे डॉक्टरों और नर्सों को प्रशिक्षण देना।
- प्रशिक्षण हेतु पाठ्यक्रम/पाठ्यचर्या तैयार करना और उसे अंतिम रूप देना।
- आईडीयू संबंधी मुद्दों पर प्रचालन अनुसंधान करना : ''ओएसटी प्रोग्राम अंडर द नेशनल एड्स कंट्रोल प्रोग्राम : ए सिचुएशन एसेस्मेंट, (बहु स्थल परियोजना जिसे जीएफएटीएम आरडी 9 एचआईवी – आईडीयू – इण्डिया अनुदान के तहत समर्थन दिया गया, एक एनटीटीसी गतिविधि) – पूर्ण, 2012''
- अगस्त 2014 तक एनडीडीटीसी द्वारा इस परियोजना के तहत निम्नलिखित प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं :
§ आयोजित किए गए कुल प्रशिक्षण कार्यक्रम : 30
§ प्रशिक्षण पाने वाले प्रतिभागियों की कुल संख्या : 888
- इण्डियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमि. एओडी, डिग्बोई, असम में एल्कोहल और स्वापक सेवन की समस्या का समाधान करने हेतु कार्यस्थल पर उपाय (राकेश लाल, अतुल अंबेडकर)
इण्डियन ऑयल कॉर्पोरेशन लि. (आईओसीएल), असम आयल डिविजन (एओडी), दिग्बोई, असम स्थित रिफाइनरी विश्व की प्राचीनतम कार्यात्मक रिफाइनरियों में से एक है। डिग्बोई शहर में एल्कोहल सेवन से संबंधित समस्याएं आ रही हैं। आयल रिफाइनरी के प्रबंधन के अनुरोध के प्रत्युत्तर में रिफाइनरी में एक परियोजना आरंभ की गई है जिसमें तीन संगठनों का सहयोग प्राप्त है :
1. इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड, असम ऑयल डिवीजन, डिगबोई, असम
2. डिपार्टमेंट ऑफ साइकिएट्री, असम मेडिकल कॉलेज, डिब्रूगढ़, असम
3. एनडीडीटीसी, एम्स, नई दिल्ली
जहां विभिन्न परियोजना कार्यकलापों के लिए आईओसीएल, एओडी, डिग्बोई द्वारा व्यय और अवसंरचना में सहयोग दिया जा रहा है, वहीं दो शैक्षणिक चिकित्सा संस्थान अपनी व्यावसायिक विशेषज्ञता के माध्यम से योगदान कर रहे हैं। यहां पर आयोजित किए जा रहे / किए गए विभिन्न कार्यकलाप निम्नलिखित हैं :
· डिग्बोई में स्वापक और एल्कोहल सेवन की स्थिति का त्वरित आकलन
· एओडी अस्पताल, डिग्बोई में डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ को प्रशिक्षण
· विभिन्न पणधारियों (एनजीओ, स्टाफ यूनियनों इत्यादि) का प्रबोधन और संवेदीकरण
· समुदाय में जागरुकता सृजन
· एओडी अस्पताल, डिग्बोई में मादक पदार्थ सेवन उपचार एकक की स्थापना करना।
· डिग्बोई में ग्रेडेड स्तरीय देखभाल हेतु रेफरल/परामर्श प्रणाली की स्थापना करना।
पुरानी परियोजनाएं
ओरल सब्स्ट्रीट्यूशन ट्रीटमेंट
बुप्रेनोरफिन से ओरल सब्स्टीट्यूशन ट्रीटमेंट यूनाइटेड नेशंस ऑफिस ऑन ड्रग्स एण्ड क्राइम, रीजनल ऑफिस फॉर साउथ एशिया, नई दिल्ली द्वारा वित्त पोषित है। यह परियोजना 2006 में शुरू की गई थी।
भारत में ओपियॉइड नशे के दीर्घकालिक उपचार हेतु चिकित्सा के रूप में बुप्रेनोरफिन की प्रभाविता की जांच करने हेतु ओपिएट के आदि लोगों का बहु-स्थलीय प्रायोगिक उपाय अध्ययन किया गया। उद्देश्य बुप्रेनोरफिन के ओरल सब्स्टीट्यूशन के प्रयोग के लिए दिशानिर्देशों को निर्धारित करना भी था।
अध्ययन में 'पूर्व – पश्चात् अभिकल्पना' का प्रयोग किया गया और बेसलाइन, 3 माह, 6 माह और 9 माह पर आकलन किया गया। देश भर के पांच स्थानों से कुल 231 ओपियॉइड के आदि रोगियों की पहचान की गई और उन्हें भर्ती किया गया।
निष्कर्षों की मुख्य विशेषताएं निम्न हैं :-
- समग्र सैम्पल में प्रतिधारण दर 3 माह पर 79 प्रतिशत, 6 माह पर 70 प्रतिशत और 9 माह पर 64 प्रतिशत थी और तत्पश्चात् उपचार में बने रहने वाले रोगियों में अनुपालन दर 80 प्रतिशत से अधिक थी।
- स्वापक उपयोग में काफी कमी देखी गई, क्योंकि हेरोइन का सेवन करने के दिनों की औसत संख्या बेसलाइन पर 24.9 ± 10.1 थी जो 9 माह के अनुवर्ती आकलन में घटकर दो दिन से कम रह गई।
- इंजेक्शन के उपयोग से इसमें (p<.001) काफी कमी हुई, जो आधारभूत समय पर 52 प्रतिशत से घटकर 9 माह के फॉलोअप में 13 प्रतिशत तक आकलित किया गया।
- यौन जोखिम में एक समवर्ती व्यवहार के कारण कंडोम के उपयोग में वृद्धि हुई थी।
- व्यसन गंभीरता सूचकांक (एएसआई) के स्वापक, कानूनी, परिवार – संबंध और मनोवैज्ञानिक क्षेत्र के अंक 3 माह में काफी कम हो गए जो कि सुधार को दर्शाते हैं।
- डब्ल्यू एच ओ जीवन की गुणवत्ता सभी चार क्षेत्रों (भौतिक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक संबंध और पर्यावरण) में अंकों में 9 माह की अनुवर्ती चिकित्सा में वृद्धि देखी गई जो कि रोगियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार दर्शाते हैं।
- ओरल सब्स्टीट्यूशन के कार्यान्वयन के संदर्भ में प्रक्रिया संकेतकों को भी गुणात्मक तकनीकों के उपयोग से प्रकाशित किया गया। सभी केंद्रों में रोगियों और परिवार के सदस्यों ने उपचार और रोगी में आए सुधार के प्रति संतोष व्यक्त किया।
इस अध्ययन के परिणाम सबलिंगुअल बुप्रेनोरफिन अनुरक्षण में नियंत्रित परीक्षण के उत्कृष्ट परिणामों के अनुकूल थे। इस उपचार को ओपियॉइड नशे के मुख्यधारा उपचार के रूप में देखा जा रहा है।
स्वापक सेवन और एचआईवी/एड्स संबंधी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय डेटाबेस
स्वापक सेवन और एचआईवी / एड्स पर कई प्रकाशन हैं जो अनुसंधानकर्ताओं और नीति निर्माताओं की तत्काल पहुंच में नहीं हैं या उपलब्ध नहीं हैं जिससे कि वे निवारक और नियंत्रक उपाय कर सकें। इन मुद्दों पर किए गए कई अध्ययन प्रकाशित नहीं हुए हैं या फार्मेट में नहीं दोहराए गए हैं जिसे सरलता से समझा जा सके। ऐसी जानकारी के एकत्रण और मिलान से अंतर को कम किया जा सकता है और नीति निर्माताओं और नियोजकों तथा प्रशासकों और अनुसंधान कर्ताओं, चाहे सरकारी हों या गैर सरकारी, के पास किसी कार्य को शुरू करने या कोई नीति बनाने से पूर्व इन मुद्दों पर प्रामाणिक, विश्वसनीय और पर्याप्त आंकड़े होंगे। इस संबंध में एम्स दक्षिण एशिया में सेकेंडरी डेटा के प्रयोग से यूएनओडीसी आरओएसए के वित्त पोषण के सहयोग से एक परियोजना – ''स्वापक सेवन और एचआईवी/एड्स संबंधी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय डेटाबेस की स्थापना करना'' कार्यान्वित कर रहा है। एम्स केंद्रीय संग्राहक (रिपोजिटरी) है और सहयोगी केंद्र बांग्लादेश, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका में स्थित हैं। इसमें प्रावधान किया गया कि ऐसे कार्यकलाप के द्वारा राष्ट्रीय और क्षेत्रीय डेटाबेस के माध्यम से स्वापक और एचआईवी मुद्दों पर समेकित और एकमत प्रतिक्रियाओं के लिए सूचना और संसाधनों के क्षेत्रीय आदान प्रदान को भी बढ़ावा दिया जाएगा।
एम्स को एक उचित और प्रयोक्ता – अनुकूल कंप्यूटर सॉफ्टवेयर तथा एकत्रित डेटा को सॉफ्टवेयर में डालने के लिए स्वापक सेवन और एचआईवी/एड्स संबंधी डेटाबेस तैयार करने हेतु एक मैनुअल बनाने का दायित्व सौंपा गया था। तत्पश्चात् स्वापक सेवन और एचआईवी/एड्स संबंधी इस डेटाबेस सॉफ्टवेयर को सभी सहयोगी केंद्रों पर संस्थापित (इंस्टाल) किया गया। सभी सहयोगी देशों में डेटा एंट्री कार्मिकों के लिए एक प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया ताकि उन्हें डेटा स्रोत का पता लगाने और फार्मेट के अनुसार सॉफ्टवेयर में डेटा एंट्री करने के लिए डेटाबेस सॉफ्टवेयर के बारे में जानकारी दी जा सके। उसके बाद प्रत्येक देश से यह अनुरोध किया गया कि वे पूरी तरह से भरे हुए सॉफ्टवेयर के साथ साथ लेख भी भेजें।
सभी देशों को लेखों, डेटा एंट्री तथा अन्य संगत पहलुओं का पता लगाने के संबंध में आवश्यक दिशानिर्देश भेजे गए। डेटा प्रलेख अध्ययन हेतु समावेशी मानदण्ड के आधार पर एचआईवी/एड्स / उच्च जोखिम व्यवहार और स्वापक या एल्कोहल सेवन / नशा से संबंधित सभी प्रलेख एकत्रित किए गए।
- स्कूल न जाने वाले (आउट ऑफ स्कूल) किशोरों में इन्हेलेंट के प्रयोग का आकलन और इस हेतु उपाय द्विवर्षीय कार्यकलाप के रूप में डब्ल्यूएचओ (भारत) द्वारा वित्तपोषित
डब्ल्यूएचओ (भारत द्वारा एक द्विवार्षिकगतिविधि के रूप में निधिकृत किया गया)
इस कार्यकलाप का उद्देश्य दो महानगरों (दिल्ली और बंगलौर) स्कूल न जाने वाले (आउट ऑफ स्कूल) किशोरों (बेघर बच्चों) में मादक पदार्थ सेवन के पैटर्न का आकलन करना था। इस परियोजना में बेघर बच्चों के लिए कार्य कर रहे कई एनजीओ सहयोगी हैं। विभिन्न डेटा एकत्रण तकनीकों के माध्यम से स्कूल न जाने वाले बच्चों / किशोरों और इनके लिए कर रहे विभिन्न सेवा प्रदाताओं से जानकारी एकत्र की गई है। इस डेटा का उपयोग एक इंटरवेंशन पैकेज तैयार करने के लिए किया गया है जिसे दिल्ली और बंगलौर में एक साथ कार्यान्वित किया जा रहा है।
- देखभाल प्रदान करने हेतु जिला आधारित मॉडल
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित
एनडीडीटीसी राज्य और जिला स्तरीय सरकारों के सहयोग से ''मादक पदार्थ का सेवन करने वालों को देखभाल प्रदान करने हेतु जिला आधारित मॉडल'' नामक परियोजना को कार्यान्वित कर रहा है। इसमें एल्कोहल और अन्य स्वापकों का सेवन / नशा करने वाले व्यक्तियों को पहचान करने, प्रबंधन और देखभाल करने हेतु मौजूदा जिला स्तरीय स्वास्थ्य मूल संरचना की भागीदारी को सुदृढ़ बनाना भी शामिल है।
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युनाइटेड ऑफिस ऑफ ड्रग्स एण्ड क्राइम, रीजनल ऑफिस फॉर साउथ एशिया (यूएनओडीसी, आरओएसए) और युनाइटेड नेशन्स इंटर रीजनल क्राइम एण्ड जास्टिस रिसर्च इंस्टीट्यूट (यूएनआईसीआईआई) द्वारा प्रायोजित परियोजना अवैध स्वापक बाजारों पर वैश्विक अध्ययन – एक बहुकेंद्रित परियोजना।
- गैर कानूनी मादक दवाओं के बाजार पर एक वैश्विक अध्ययन - एक बहु केंद्र परियोजना
यूएनओडीसी और सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रायोजित परियोजना
- भारत में स्वापक सेवन के विस्तार, पैटर्न और प्रवृत्तियों पर राष्ट्रीय सर्वेक्षण
यूएनओडीसी आरओएसए द्वारा प्रायोजित परियोजनाएं
- बुप्रेनोरफिन से ओरल सब्स्टीट्यूशन ट्रीटमेंट
- स्वापक सेवन और एचआईवी / एड्स संबंधी डेटाबेस के निर्माण का सहयोगात्मक अध्ययन
- नेशनल ड्रग यूज सर्वे, मलदीव (अतुल अंबेकर, आर एम पांडे), यूएनओडीसी आरओएसए की परियोजना (2010-2012).
- फैक्टर्स इंफ्लुएंसिंग परफॉर्मेंस ऑफ आईडीयू, टीआई, (यूएनओडीसीआरओएसए द्वारा समर्थित बहु स्थल परियोजना)। 2012, पूर्ण।
- कैपिसिटी बिल्डिंग नीड्स एसेसमेंट ऑफ आईडीयू टीआई इन इंडिया, अतुल अम्बेकर, (यूएनओडीसीआरओएसए द्वारा समर्थित बहु स्थल परियोजना). 2012, पूर्ण।
- एसोसिएशन ऑफ ड्रग यूज पैटर्न विद् वलनरबिलिटी एंड सर्विस अपटेक अमंग इंजेक्टिंग ड्रग यूजर्स, अतुल अम्बेकर, (यूएनओडीसीआरओएसए द्वारा समर्थित बहु स्थल परियोजना). 2012, पूर्ण।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (जिनेवा) द्वारा प्रायोजित परियोजनाएं :
1. विकासशील देशों में एल्कोहल नीति 2. एएसएसआईएसटी (असिस्ट) का विकास और वैधीकरण 3. विविध सांस्कृतिक परिवेशों में एल्कोहल का सेवन करने वालों में यौन व्यवहार के अवधारकों का अध्ययन करने की प्रविधि का विकास करना 4. विविध संस्कृतियों में एल्कोहल सेवन और यौन व्यवहार : 7 देशों की साहित्यिक समीक्षा 5. असिस्ट के माध्यम से प्राथमिक देखभाल के दौरान मादक पदार्थ के सेवन से होने वाले विकारों की पहचान करना और उनका प्रबंधन करना 6. मादक पदार्थ सेवन के विकारों में संक्षिप्त इंटरवेंशन का अंतरराष्ट्रीय यादृच्छिक नियंत्रित परीक्षण
7. एल्कोहल सेवन की समस्या से ग्रस्त व्यक्तियों के लिए वेब पोर्टल और ऑनलाइन आकलन तथा इंटरवेंशन मॉड्यूल तैयार करना (बहु देशीय, विश्व स्वास्थ्य संगठन मुख्यालय परियोजना, जारी)
स्वास्थ्य मंत्रालय और परिवार कल्याण, भारत सरकार और डब्ल्यूएचओ (भारत) द्वारा प्रायोजित परियोजनाएं :
- त्रिशूर की सामान्य जनसंख्या में मादक दवा निर्भरता और सह रुग्णता के प्रसार के एक सर्वेक्षण
- देश में सरकार के नशामुक्ति केंद्रों का मूल्यांकन
- एम्स में नए आंकड़े जोड़े बिना नई विधियों के उपयोग से मादक दवाओं पर सर्वेक्षण आंकड़ों का तथा राष्ट्रीय आंकड़ों के सर्वेक्षण के उन्नत सांख्यिकीय विश्लेषण
- दिल्ली महानगर में तंबाकू सहित मादक पदार्थों के उपयोग से व्यवहार गत विकारों का प्रचलन और तंबाकू एक गेटवे मादक दवा के रूप में
- दार्जिलिंग, कोहिमा, आइजोल के जिलों में शराब, तंबाकू और अन्य मादक पदार्थों पर तीव्र आकलन सर्वेक्षण परियोजना
- उत्तरी गोवा, जोधपुर, मद्रास के जिलों में एल्कोहल, तंबाकू और अन्य मादक पदार्थों पर तीव्र आकलन सर्वेक्षण परियोजना
- कोहिमा जिले में ब्यूप्रेनोरफिन अनुरक्षण कार्यक्रम
- गोवा के दो जिला अस्पताल में एल्कोहल उपयोग से संबंधित विकारों की पहचान और प्रबंधन
- नशा मुक्ति केंद्रों के सुदृढ़ीकरण पर कार्यशाला
- भारत में अफीम रजिस्ट्री को व्यवस्थित बनाने पर कार्यशाला
- भारत में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल स्थितियों में शराब के उपयोग के प्रबंधन पर कार्यशाला
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रायोजित परियोजना
- समुदाय आधारित पायलट परियोजना : मंदसौर (मध्य प्रदेश), बाराबंकी (उत्तर प्रदेश) और इम्फाल (मणिपुर) में बहु - केंद्रित परियोजना
वित्त मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रायोजित परियोजना
- सरकारी अफीम और उपक्षार फैक्टरी, गाजीपुर, उत्तर प्रदेश में श्रमिकों की स्वास्थ्य स्थिति
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), भारत सरकार द्वारा प्रायोजित परियोजना :
- स्वायत्त निगरानी के मादक पदार्थ : शारीरिक प्रशिक्षण का प्रभाव
वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान केन्द्र (सीएसआईआर), भारत सरकार द्वारा परियोजनाएं प्रायोजित :
- प्रयोगात्मक प्रेरित निकोटीन सहिष्णुता दर में डोपामाइन की भूमिका
- चूहों में निकोटीन निकासी को संशोधित करने में नाइट्रिक ऑक्साइड सिंथेस इनहिबिटर्स की भूमिका
अन्य एजेंसियों द्वारा प्रायोजित परियोजना :
- उच्च शक्ति (0.4 & 2.0mg) बुप्रीनोर्फिन - विपणनकेबाद निगरानी
- एड नॉक - एन (ब्यूप्रेनोफिन और नेलोक्सोन का संयोजन) रूसन फार्मा द्वारा प्रायोजित विपणन के बाद निगरानी, जून 2006
- अल्कोहल प्रेरित अग्नाशय विकारों का आनुवंशिक आधार। गैस्ट्रोएंट्रेरोलॉजी विभाग के साथ, एम्स, आईसीएमआर द्वारा वित्त पोषित।
- चिरकालिक प्राथमिक अनिद्रा के रोगियों में ईएसडी - 27 की निरापदता और दक्षता के मूल्यांकन हेतु चरण दो क्लिनिकल अध्ययन। न्यूरोलॉजी विभाग (न्यूरोफिजियोलॉजी अनुभाग) के साथ अंतर विभागीय परियोजना हिमालय ड्रग कंपनी द्वारा निधिकृत।
- मानव एएलडीएच 2 और एडीएच 2 लोकाई का उत्तर भारतीय व्यक्तियों में वितरण भारत में 300 स्थानों पर आईडीयू का माप आकलन, एसपीवायएम, नई दिल्ली के सहयोग से, डीएफआईडी (यूके) द्वारा निधिकृत।
- पंजाब और हरियाणा में आईडीयू का आकार अनुमान, एस पी वाय एम, नई दिल्ली के सहयोग से, यूएनएडीएस द्वारा वित्त पोषित
- मोलिकुलर जेनेटिक्स ऑफ एल्कोहल डिपेंडेंस : कंट्रीब्यूशन ऑफ पॉलीमोर्फिज्मस इन डोपेमिनर्जिक एण्ड सेरोटोनर्जिक पाथवे जिनस। (मीरा वासवानी, अतुल अम्बेकर), आईसीएमआर (2008-2010) द्वारा निधिकृत।
- स्टडी ऑन पैटर्न, प्रोफाइल एण्ड कॉरिलेटस ऑफ सबस्टेंस यूज़ इन चिल्ड्रन (अंजु धवन, रमनदीप पटनायक, अनिता चोपड़ा) एनसीपीआर द्वारा निधिकृत ( 2012-2013) .
- फीसिबिलिटी ऑफ ट्रांसपोर्टिंग यूरिन सैम्पल्स ऑफ ड्रग यूजर्स ऑन फिल्टर पेपर फॉर स्क्रीनिंग ड्रग्स ऑफ एब्यूज़ : ए पायलट एक्स्प्लोरेटरी स्टडी, (राका जैन., अतुल अम्बेकर, रिजवाना कुरैशी), भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद द्वारा निधिकृत परियोजना ( 2012-2014).
· एफिकेसी ऑफ वेरिनिक्लाइन फॉर स्मोकलेस टोबैको यूज़। (राका जैन, सोनाली झांजी, वीना जैन, आर स्कनोल्ल) नेशनल इंस्टीट्यूट ऑन ड्रग एब्यूज़ (एनआईडीएस), एनआईएच, यूएस सरकार द्वारा एम्स और यूपीईएनएन (यूनिवर्सिटी ऑफ पेन्नसिलवेनिया) के सहयोग से निधिकृत। (2011-2014).
- ए पायलट स्टडी ऑफ फीसिबिलिटी एण्ड एफिकेसी ऑफ ब्रिफ इंटरवेंशन कॉम्पेयर्ड विद सिम्प्ल एडवाइस व्हेन लिंक्ड टू द ब्रिफ एसिस्ट फॉर सबस्टेंस यूज़ डिसोर्डर्स इन प्राइमरी हैल्थ केयर एण्ड कॉम्युनिटी सेटिंग, ( अतुल, अम्बेकर, दीपक यादव), प्रोजेक्ट ऑफ यूनिवर्सिटी ऑफ एडेलेड, डब्ल्यूएचओ सहयोगी केंद्र (2011 – 2013).
- स्टडी टू एक्सप्लोर ट्रांसिशन टू इंजेक्टिंग ड्रग यूज़ बाय ओपिओइड यूजर्स इन नोर्थ इण्डिया, (अतुल, अम्बेकर, अनीता चोपड़ा, हेम सेठी) एसपीवायएम, रीजनल रिसोर्स एण्ड ट्रेनिंग सेंटर, नोर्थ, एमएसजेई, भारत सरकार द्वारा समर्थित परियोजना (2012 – 2013).
- ड्रग यूज़ पैटर्न असेस्मेंट अमंग आईडीयू इन बिहार, हरियाणा एण्ड उत्तराखण्ड (इण्डिया एचआईवी / एड्स एलियंस, नई दिल्ली द्वारा समर्थित बहु स्थल परियोजना) अतुल अम्बेकर – 2013 पूरा किए गए।
एम्स द्वारा प्रायोजित परियोजनाएं :
- शहरी समुदाय और नशा मुक्ति केंद्र नमूने में एल्कोहल उपयोग विकारों की पहचान हेतु जांच (एयूडीआईटी) का समवर्ती और विभेदक सत्यापन।
- चूहों में नार्कोटिक एगोनिस्ट द्वारा उद्दीपित नेलेक्सोन के व्यवहार प्रभाव से उन्नत संवेदनशीलता को ब्लॉक करना।
- मोर्फिन उपचारित चूहों में नेलोक्सोन से उत्पन्न ऑपरेंट डिक्रिमेंट को एनएमडीए ग्राही एंटागोनिस्ट (केटामिन) के प्रभाव
- शराब उपयोग में संक्षिप्त हस्तक्षेप : एकसमुदाय आधारित तुलनात्मक अध्ययन
अन्य :
केंद्र के अधिकांश कार्यकलापों को पुस्तकों, निबंधों और शोध रिपोर्टों के रूप में प्रकाशित किया गया है। पिछले चार वर्षों में संकाय ने वैज्ञानिक जर्नल के 40 प्रकाशन प्रकाशित किए हैं और देश में तथा संपूर्ण संसार में वैज्ञानिक सम्मेलनों में कई प्रस्तुतीकरण भी दिए हैं।
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