प्रजनन जीवविज्ञान
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एम्स में देश के प्रजनन जीव विज्ञान का सबसे पुराना विशेषज्ञ विभाग है। प्रजनन अनुसंधान इकाई (आरबीआरयू) का सृजन एम्स में फोर्ड फाउंडेशन के अनुदान के साथ 1963 में किया गया था। आरबीआरयू को 1970 में एक पूर्ण सज्जित प्रजनन जीव विज्ञान विभाग में रूपांतरित किया गया। तब से यह विभाग मानव प्रजनन में अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए एक उत्कृष्टता केन्द्र रहा है और साथ ही 1972 � 1978 तक यह विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानव प्रजनन प्रशिक्षण केन्द्रों में से एक भी रहा है। प्रजनन जीव विज्ञान विभाग लंबे समय तक (1999 तक) विश्व स्वास्थ्य संगठन का एक सहयोगी केन्द्र भी रहा है।
प्रजनन जीव विज्ञान विभाग देश के सबसे शुरूआती ऐसे केन्द्रों में से एक है जहां उर्वरता आकलन में परिष्कृत अनुसंधान किए गए हैं। विभाग मूल भूत अनुसंधान सहित मानव ऊतक संवर्धन, भ्रूण संवर्धन और अन्य जंतु अन्वेषणों द्वारा मानव उर्वरता तथा गर्भ निरोध की प्रक्रिया को समझने में संलग्न है। प्रजनन जीव विज्ञान (आरबी) के आधुनिक विषय में सहायता प्राप्त प्रजनन प्रौद्योगिकियों (जो हैं इंट्रासाइटोप्लाज्मिक शुक्राणु इंजेक्शन, उसाइट / भ्रूण सूक्ष्म परिवर्तन, लेजर हैचिंग आदि) के प्रयोगशाला पक्षों (अधिकांश भाग) को संलग्न करता है। इसमें पूर्व रोपण आनुवंशिक निदान, भ्रूण स्टेम कोशिका अवकलन, गैमिट / भ्रूण हिम संरक्षण और शुक्राणु आकलन / प्रसंसाधन के साथ प्रायोगिक जैव चिकित्सा अनुसंधान तकनीकों के अन्य संगत क्षेत्र भी शामिल हैं। सहायता प्राप्त प्रजनन प्रौद्योगिकी की बढ़ती जरूरत के साथ अनुर्वरता की बढ़ती दर, खास तौर पर प्रजनन जीव वैज्ञानिकों के लिए मांग करने वाले पुरुषों की संख्या बढ़ी है। परन्तु देश में व्यापक प्रशिक्षण की कमी के कारण ऐसे कुछ ही केन्द्र उपलब्ध हैं।
प्रजनन जीव विज्ञान में दो घटक है, पहला प्रमुख मूल भूत विज्ञान घटक और दूसरा अल्प क्लिनिकल घटक। क्लिनिकल घटक अनुर्वर जोड़ों के प्रबंधन के क्लिनिकल पक्षों को समझने के माध्यम तक सीमित हैं और इसमें सभी अन्वेषणात्मक प्रक्रियाओं की व्याख्या दी जाती है।
प्रजनन जीव विज्ञान विभाग द्वारा प्रजनन जीव विज्ञान में टीएचडी के लिए डॉक्टरेट पाठ्यक्रम प्रदान किया जाता है। विभाग द्वारा विशेषज्ञों को अल्पावधि तथा दीर्घावधि प्रशिक्षण भी प्रदान किया जाता है, जो इनके प्रबंधन तथा प्रजनन सहायता के माध्यम से अनुर्वरता में अनुसंधान करते हैं, जैसे भ्रूण सूक्ष्म रूपांतरण / पात्रे संवर्धन, आईसीएसआई, पीजीडी, भ्रूण लेजर हैचिंग, हिम संरक्षण आदि तथा परिष्कृत हार्मोंन आमापन, आण्विक कोशिका आनुवंशिकी, हिम संरक्षण, पात्रे स्टीरॉइडोजेनेसिस आदि के अलावा उर्वरता नियंत्रण कार्यक्रम भी चलाए जाते हैं। विभाग में चिकित्सीय और मूलभूत पृष्ठभूमि दोनों वर्गों के संकाय सदस्य हैं।