जैव सांख्यिकी
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सुश्री एम कलाइवाणी
जैव सांख्यिकी की सामग्री और विषय का स्वरूप पिछले कुछ दशकों के दौरान पूरी तरह बदल गया है। एक निष्क्रिय और विवरणात्मक विषय होने के नाते जैव सांख्यिकी स्वास्थ्य और चिकित्सा देखरेख के क्षेत्र में निर्णय लेने के लिए एक सघन, गतिशील और रचनात्मक साधन के रूप में उभरा है। जैव विज्ञान के प्रयोगों और अन्वेषणों, जनसांख्यिकी के संभावित मॉडलों के विकास तथा स्वास्थ्य देखरेख प्रदायगी में प्रचालनात्मक अनुसंधान तकनीकों के अनुप्रयोग की योजना और विश्लेषण के लिए सशक्त और परिष्कृत सांख्यिकी तकनीकों में चिकित्सा और स्वास्थ्य अनुसंधान में नए आयाम और क्षमताएं तैयार की हैं। इस संदर्भ में एक चिकित्सा कार्मिक का प्रशिक्षण, विशेष रूप से एक चिकित्सा अनुसंधान कार्यकर्ता को आज अधूरा माना जाता है यदि वह जैव सांख्यिकी तकनीकों के अनुप्रयोग की संभाव्यताओं से उपयुक्त रूप से अवगत नहीं है, ताकि वह वैज्ञानिक तथा सांख्यिकी की दृष्टि से मान्य डिजाइनों के साथ अपने अनुसंधान अध्ययनों की योजना बना सके और उपयुक्त सांख्यिकी विधियों को लागू करते हुए एक वैध और सार्थक निष्कर्ष पर पहुंच सके।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), जैव सांख्यिकी 1973 तक निवारणात्मक और सामाजिक चिकित्सा विभाग का हिस्सा था। अक्तूबर 1973 में एक स्वतंत्र जैव सांख्यिकी इकाई का गठन निवारणात्मक और सामाजिक चिकित्सा विभाग से किया गया था। इस इकाई को 1986 में जैव सांख्यिकी विभाग का नाम दिया गया जो ऐसे विभाग की लंबे समय से महसूस की गई जरूरत पूरी कर सके। एक स्वतंत्र विभाग के रूप में यह संस्थान में अध्यापन और अनुसंधान के लिए संकाय, वैज्ञानिक कर्मचारियों और छात्रों की आवश्यकताएं पूरी करता हैं।