अनुसंधान
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अनुसंधान
क्र. सं. |
परियोजना का नाम |
परियोजना का विवरण |
01. |
आंतरिक जन्य चयापचय विकारों पर कार्यबल : जन्मजात हाइपोथाइरॉइडिज्म और जन्मजात एड्रिनल हाइपर प्लासिया के लिए नवजात बच्चों की छानबीन : आईसीएमआर का बहुकेन्द्रिक अध्ययन
डेटा समन्वय केन्द्र : डॉ. आर एम पाण्डे के अधीन
निधिकरण का स्रोत : आईसीएमआर
राशि : 9 लाख रु.
स्थिति : जारी |
यह एक प्रायोगिक अध्ययन है और जन्मजात हाइपोथाइरॉइडिज्म (सीएच) और जन्मजात एड्रिनल हाइपर प्लासिया (सीएएच) के केवल दो रोग हैं जिनकी छानबीन देश के 5 केन्द्रों में 1 लाख नवजात बच्चों की आबादी में की जाएगी। दिल्ली (उत्तर), मुम्बई (पश्चिम), चेन्नई (दक्षिणी), हैदराबाद (मध्य), कोलकाता (पूर्व) के साथ आईसीएमआर, नई दिल्ली में केन्द्रीय समन्वयक इकाइयां शामिल हैं। इस प्रायोगिक अध्ययन से देश में इन रोगों के भार के परिमाण के बारे में आंकड़े मिलेंगे और साथ ही सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के रूप में नवजात बच्चों की छानबीन की व्यवहार्यता स्थापित की जा सकेगी। इस अध्ययन का प्राथमकि उद्देश्य भारतीय आबादी के विभिन्न जियोएथनिक क्षेत्रों के लिए नवजात बच्चों की छानबीन की व्यवहार्यता का मूल्यांकन एवं चुनी हुई नवजात चयापचय त्रुटियों अर्थात हमारी आबादी में सीएच और सीएएच की दर को परिभाषित करने के लिए इसे दूर करना है। राष्ट्रीय स्तर के डेटा समन्वय, डेटा संवीक्षा और परियोजना के डेटा विश्लेषण जैव सांख्यिकी विभाग के दायरे में आते हैं। |
02. |
एडेफोविर, एडेफोविर + लेमीवुडिन और एडेफोविर तथा ग्लिसाइरिजिन के संयोजन को एचबीवी संबंधी मुआवज़ा रहित सिरोसिस में क्लिनिकल परीक्षण की नियंत्रित बहु केन्द्रित यादृच्छिक विधि अपनाना
डेटा समन्वय केन्द्र : डॉ. डॉ. वी श्रीनिवास के अधीन
निधिकरण का स्रोत : आईसीएमआर
राशि : 8.25 लाख रु.
स्थिति : जारी |
इस अध्ययन का प्राथमिक उद्देश्य एडेफोविर, एडेफोविर + लेमीवुडिन तथा एडेफोविर + ग्लिसाइरिजिन की दक्षता का आकलन एचबीवी संबंधी मुआवज़ा रहित सिरोसिस यकृत के रोगियों में क्लिनिकल, जैव रसायन और वायरस के परिणाम द्वारा प्राप्त करना है। इसमें इलाज के 3 खण्डों में देश के 7 केन्द्रों से 3 वर्ष से अधिक की अवधि में कुल 300 रोगियों को यादृच्छिक रूप से चुना जाएगा। इनका इलाज 18 माह तक चलेगा। क्लिनिकल और जैव रासायनिक आकलन हर माह किए जाएंगे और वायरस संबंधी आकलन प्रत्येक तीन माह में किए जाएंगे। जैव सांख्यिकी विभाग इस बहु केन्द्र परीक्षण का समन्वय केन्द्र है और यह दवाओं की प्राप्ति तथा वितरण, रोगियों के यादृच्छिक चयन, प्रत्येक केन्द्र से मासिक डेटा का संग्रह, प्रपत्र आदि की जांच और संवीक्षा, डेटा एंट्री, आवधिक विश्लेषण और परीक्षण की निगरानी आदि। |
03. |
एचसीवी � भारतीय चेहरा
डेटा समन्वय केन्द्र : डॉ. वी श्रीनिवास के अधीन
निधिकरण का स्रोत : ब्रिस्टॉल मेयर्स स्क्विब फाउंडेशन
राशि : 5,43,840 रु. स्थिति : जारी |
यह बहु केन्द्रिक अध्ययन भारत में अस्पताल आधारित यकृत रोगों की दर पर लक्षित है और इसके साथ बड़े अस्पतालों में आने वाले रोगियों में से इसकी इटियोलॉजी और यकृत की समस्या का स्पेक्ट्रम शामिल है। यह यकृत रोग के रोगियों में स्वास्थ्य देखभाल संसाधन उपयोगिता पैटर्न के आकलन पर भी लक्षित है। जैव सांख्यिकी विभाग डेटा संग्रह, संकलन, गुणवत्ता नियंत्रण और विश्लेषण हेतु नोडल एजेंसी है। |
04. |
भारत में पारिवारिक परिवेश में दुर्व्यवहार का सर्वेक्षण (भारत सुरक्षा अध्ययन)
परियोजना अन्वेषक : डॉ. आर एम पाण्डे
निधिकरण का स्रोत : आईसीआरडब्ल्यू, यूएसए
राशि : 30 लाख रु.
स्थिति : पूर्ण |
इंडिया सेफ अध्ययन एक जनसंख्या आधारित क्रॉस सेक्शनल सर्वेक्षण है जो भारत के 7 शहरों (नई दिल्ली, लखनऊ, भोपाल, चेन्नई, त्रिवेन्द्रम, नागपुर और वेल्लोर) में अप्रैल 1998 और सितम्बर 1999 के बीच किया गया। यूएसएड से एक अनुदान के माध्यम से इंटरनेशनल सेंटर फॉर रिसर्च ऑन वीमेन (आईसीआरडब्ल्यू) द्वारा निधिकृत। इस अध्ययन में भारतीय परिवार में वयस्क महिलाओं के खिलाफ शारीरिक और मनोवैज्ञानिक दुर्व्यवहार, समुदाय, परिवार और वैयक्तिक कारणों से जुड़ी पारिवारिक हिंसा और भारत के ग्रामीण तथा शहरी परिवारों में पारिवारिक हिंसा में अंतर की दरों की जांच की गई। प्राथमिक साक्षात्कार देने वाली आश्रित बच्चों की 9938 माताएं (सूचकांक महिला) थीं। द्वितीयक रूप से 1000 सासों का भी साक्षात्कार लिया गया। फोकस समूह की चर्चाएं भी आयोजित की गई थीं। इसमें से 20 प्रतिशत महिलाओं ने पतियों के हिंसक शारीरिक व्यवहार के जीवनभर के अनुभव की जानकारी दी। ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं ने शारीरिक दुर्व्यवहार की उच्चतम दरों की रिपोर्ट की : शहरी झुग्गियों में रहने वाली महिलाओं में मारपीट और दुर्व्यवहार की उच्चतम दरें पाई गई। शहरी गैर झुग्गी क्षेत्रों की महिलाओं में इन तीनों व्यवहारों की अल्पतम दरों की रिपोर्ट की गई। ग्रामीण और शहरी झुग्गियों में रहने वाली आधी से कम महिलाओं द्वारा इनकी रिपोर्ट की गई। इनमें शारीरिक हिंसक व्यवहारों की तुलना में मनोवैज्ञानिक हिंसा की दर अधिक पाई गई। लगभग आधी महिलाओं ने, जिन्होंने अपने पति द्वारा पीटने की रिपोर्ट की थी, उन्होंने कहा कि ऐसा व्यवहार तब हुआ जब वे गर्भवती थी। लगभग आधी महिलाओं ने, जिन्होंने अपने पति द्वारा पीटने की रिपोर्ट की थी, उन्होंने कहा कि ऐसा व्यवहार तब हुआ जब वे गर्भवती थी। |
05. |
प्रजनन पश्चात की अवधि में महिलाओं में गैर संचारी पोषण संबंधी विकारों के लिए उपयुक्त रोकथाम और हस्तक्षेप कार्यनीतियों का विकास
परियोजना अन्वेषक : डॉ. आर एम पाण्डे
निधिकरण का स्रोत : डीएसटी
राशि : 22.86 लाख रु.
स्थिति : पूर्ण |
यह पूरे देश में किया गया क्रॉस सेक्शनल बहु स्थल अवलोकन अध्ययन है। इस अध्ययन के उद्देश्य थे (i) प्रजनन पश्चात अवधि में महिलाओं के लिए स्वास्थ्य और पोषण रूपरेखा तैयार करना, (ii) पोषण के साथ प्रमुख रूप से जुड़ी समस्याओं में योगदान देने वाले कारकों और उनकी स्वास्थ्य समस्याओं को पहचानना, (iii) इन स्वास्थ्य समस्याओं की प्राथमिक रोकथाम और प्रबंधन के लिए कार्यनीतियों विकास तथा (iv) जागरूकता उत्पादन आधारित आबादी में समुदाय के अंदर स्वास्थ्यकर्मियों को प्रशिक्षित करना। राष्ट्रीय स्तर का डेटा समन्वय, परियोजना की डेटा संवीक्षा और डेटा विश्लेषण जैव सांख्यिकी विभाग के दायरे में आते हैं। |
06. |
र्गीकरण की बहु परिवर्ती सांख्यिकी विधियों की तुलना : तर्क संगत रिग्रेशन, वर्गीकरण और रिग्रेशन वृक्ष तथा कृत्रिम तंत्रिका नेटवर्क
डॉ. आर एम पाण्डे के अधीन वरिष्ठ अनुसंधान अध्येतावृत्ति
स्थिति : पूर्ण |
इस अध्ययन में भारतीय आबादी पर एक वर्गीकरण नियम के विकास और युक्ति संगत रिग्रेशन की तुलना, वर्गीकरण और रिग्रेशन वृक्ष तथा कृत्रिम तंत्रिका नेटवर्क तैयार करने का प्रयास किया गया है ताकि एशियाई भारतीयों में डिस्ग्लाइसेमिया का पूर्वानुमान लगाया जा सके। उत्तर भारत के एशियाई भारतीयों पर किए गए डायबिटीज के विभिन्न जोखिम कारकों पर केन्द्रित दो जनसांख्यिकी संयुक्त अध्ययनों का डेटा सैट डायबिटीज के उच्च जोखिम वाले व्यक्तियों को वर्गीकृत करने के लिए वर्गीकरण नियम विकसित करने हेतु उपयोग किया जाता रहा है, जिसमें जन सांख्यिकी, पारिवारिक इतिहास, जीवनश्ौली कारक, एंथ्रोपोमेट्रिक और जैव रासायनिक रूपरेखा को स्वतंत्र परिवर्ती के रूप में उपयोग किया गया है। इस अध्ययन का उद्देश्य भारतीय आबादी पर एक वर्गीकरण नियम के विकास और युक्ति संगत रिग्रेशन की तुलना, वर्गीकरण और रिग्रेशन वृक्ष तथा कृत्रिम तंत्रिका नेटवर्क तैयार करने तथा इनके सापेक्ष निष्पादन की तुलना की विधि के विकास का प्रयास किया गया है ताकि एशियाई भारतीयों में डायबिटीज़ पूर्व / डायबिटीज़ का पूर्वानुमान लगाया जा सके। |
07. |
भारत में गर्भ निरोधक अपनाने की जनसांख्यिकी समझ का बहु स्तरीय विश्लेषण
परियोजना अन्वेषक : डॉ. एस एन द्विवेदी
निधिकरण का स्रोत : एम्स
राशि : 50000 रु.
स्थिति : पूर्ण |
पहली बार भारतीय डेटा के बहु स्तरीय विश्लेषण और संबंधित अनुकरण परिणामों का उपयोग करते हुए मॉडल की रिपोर्ट की गई थी, जिसमें पदानुक्रमिक संरचना को विचार में लिया गया और सभी स्तरों से परिवर्तियों को शामिल किया गया ताकि सही विश्लेषण और वर्तमान गर्भ निरोधक उपयोग के आंकड़ों की उचित व्याख्या की जा सके। भारतीय राज्य ��उत्तर प्रदेश�� को 10 अक्तूबर 1992 से 22 फरवरी 1993 के दौरान आयोजित राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के तहत शामिल किया गया। मॉडल 1 के लिए वर्तमान में विवाहित 7851 महिलाओं को लिया गया जो न तो गर्भवती थीं और न ही उनमें प्रसव पश्चात माहवारी एमेनोरिया (पीपीए) जारी था। पुन: मॉडल 2 के लिए उन महिलाओं को लिया गया जिनका कम से कम एक बच्चा (n=6748) था। दो स्तरीय तर्क संगत रिग्रेशन विश्लेषण में उन महिलाओं के लिए किया गया जो (स्तर 1) और पीएसयू (प्राथमिक नमूना इकाई) स्तर (स्तर 2) परिवर्ती सहित थीं, उन्हें विचार में लिया गया। इनके परिणामों से प्रकट हुआ कि अंतिम बच्चे की उत्तरजीविता स्थिति उत्तर प्रदेश में गर्भ निरोधक अपनाने पर गहरा प्रभाव डालती हैं। इनसे पुन: समर्थन मिला की सार्वजनिक स्वास्थ्य शिक्षा (टीवी संदेश) कम शिक्षित महिलाओं के बीच अधिक प्रभावी है। साथ ही सभी मौसम वाली सड़कों की पीएसयू-स्तर की उपस्थिति समान रूप से प्रभावशाली है। उच्चतर स्तर के परिवर्तियों को विचार में लेने से न केवल अधिक शुद्ध परिणाम मिले बल्कि इससे नीति निर्माताओं को सहायता देने के लिए महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य संकेत भी प्राप्त हुए। |
08. |
सार्वजनिक स्वास्थ्य / परिवार कल्याण पर समुदाय स्तर के प्रभावों की भूमिका के आकलन हेतु बहु स्तरीय जनसांख्यिकी विश्लेषण परियोजना अन्वेषक : डॉ. एस. एन. द्विवेदी निधिकरण का स्रोत : आईसीएमआर
राशि : 4 लाख रु.
स्थिति : पूर्ण |
सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में आम तौर पर किसी भी पक्ष के आंकड़ों सहित शिशु मृत्यु दर से पदानुक्रमिक संरचना निर्मित होती है। यह कुछ मामलों में निश्चित भी बन जाती है, जहां बड़े पैमाने पर किए गए अध्ययनों में अध्ययन डिजाइन के क्लस्टर नमूने शामिल हैं। पारंपरिक रिग्रेशन मार्ग को डेटा विश्लेषण में अपनाते हुए, अर्थात पदानुक्रमिक संरचना को विचार में न लेकर, या तो सूक्ष्म (व्यक्तिगत) या मैक्रो (समुदाय) स्तर पर लेने से अभिलेखों की स्वतंत्रता से संबंधित वांछित अवधारणा से बचा जा सकता है। तदनुसार इसके परिणामस्वरूप रिग्रेशन गुणांकों की मानक त्रुटि के संभावित अल्प आकलन के कारण परिणामों में विकृति आ सकती है। अधिक विशिष्ट रूप से कहा जाए तो सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम की दृष्टि से एक असंगत सह परिवर्ती महत्वपूर्ण सह परिवर्ती के रूप में उभर सकता है जिससे अनुचित सार्वजनिक स्वास्थ्य निहितार्थ हो सकते हैं। इस समस्या से निपटने के लिए वर्तमान कार्य का उद्देश्य राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 1998-99 के दूसरे दौर के तहत उपलब्ध शिशु मृत्यु दर के बहु स्तरीय विश्लेषण के साथ निपटना इस वर्तमान कार्य का उद्देश्य था। इस विधि से अधिक शुद्ध परिणाम मिलते हैं जो सार्थक सार्वजनिक स्वास्थ्य निहितार्थ रखते हैं। इसके अलावा इस विधि के तहत विभिन्न स्तरों पर भिन्नता का आकलन और इनके सह परिवर्ती भी प्राप्त होते हैं। मूलत: इस अध्ययन का उद्देश्य दो भागों में था : उपरोक्त उल्लिखित डेटा सैट पर किए गए बहु स्तरीय विश्लेषण तथा जिनमें केवल ग्रामीण भारत के आंकड़ों पर विचार किया गया था। परिणाम संकेत मिलता है कि समुदाय (उदाहरण के लिए जिला, राज्य) स्तर के परिवर्तियों में भारत की शिशु मृत्यु दर के विषय में प्रमुख भूमिका है। सारांश में यदि अभिकलनात्मक सुविधाएं उपलब्ध हैं तो पदानुक्रम संरचना में शामिल आंकड़ों से निपटने के लिए बहु स्तरीय विश्लेषण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए जिससे सार्थक सार्वजनिक स्वास्थ्य निहितार्थ वाले शुद्ध परिणाम मिल सकें। |
09. |
भारत में गर्भ निरोधक अपनाने के लिए कुछ जनसांख्यिकी मॉडल और उनकी तुलनाएं
परियोजना अन्वेषक : डॉ. एस. एन. द्विवेदी
निधिकरण का स्रोत : एम्स
राशि : 50000 रु.
स्थिति : पूर्ण |
इस अध्ययन में भारतीय राज्य ��उत्तर प्रदेश�� में 1998-99 के दौरान आयोजित राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के तहत वर्तमान में उपलब्ध आंकड़ों का उपयोग करते हुए गर्भ निरोधक अपनाने के लिए यादृच्छिक प्रभाव के मॉडल लिए गए। प्रथम मॉडल में वर्तमान में विवाहित 5028 महिलाओं को लिया गया जो न तो गर्भवती थीं और न ही उनमें प्रसव पश्चात माहवारी एमेनोरिया (पीपीए) जारी था। पुन: दूसरे मॉडल में उन महिलाओं को लिया गया जिनका कम से कम एक बच्चा (n=4359) था। जैसा कि पिछली परियोजना में रिपोर्ट किया गया, इस विधि में सभी स्तरों के परिवर्तियों को शामिल करने के लिए आंकड़े की पदानुक्रम की प्रचलित संरचना को विचार में दिया गया ताकि उनके अपने स्तरों पर अधिक शुद्ध विश्लेषण किया जा सके, जिससे अधिक विश्वसनीय हस्तक्षेप प्राप्त हों। दो स्तरीय तर्क संगत रिग्रेशन विश्लेषण में उन महिलाओं के लिए किया गया जो (स्तर 1) और पीएसयू (प्राथमिक नमूना इकाई) स्तर (स्तर 2) परिवर्ती सहित थीं, उन्हें विचार में लिया गया। इन मॉडलों में सह परिवर्तियों के समान सैट को विचार में लिया गया जैसा कि 1992-93 के दौरान आयोजित एनएफएचएस के आंकड़ों पर आधारित मॉडल में किया गया था ताकि इन मॉडलों की तुलना की जा सके। पूर्व परिणामों (1992-93), के विपरीत इन परिणामों से संकेत मिलता है कि अंतिम बच्चे की उत्तरजीविता की स्थिति उ. प्र. में गर्भ निरोधक अपनाने के विष्ाय में अब एक महत्वपूर्ण कारक नहीं है। जबकि अन्य कारक जैसे महिलाओं की शिक्षा अब भी महत्वपूर्ण बना हुआ है। |
10. |
स्तन, मुंह और ग्रसनी कैंसर के रोगियों के संबंध में रोकथाम और इलाज में प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक विलंबों पर अध्ययन
डॉ. एस. एन. द्विवेदी के अधीन वरिष्ठ अनुसंधान अध्येतावृत्ति
निधिकरण का स्रोत : आईसीएमआर
स्थिति : पूर्ण |
महिलाओं के बीच प्रमुख स्थल विशिष्ट प्रचलित कैंसर स्तन और सर्विक्स पर पाए जाते हैं, जबकि पुरुषों में मुंह, ग्रसनी और फेंफड़ों में होते हैं। कैंसर का जल्दी पता लगाना और इसका जल्दी इलाज रोग दर कम करने और उत्तरजीविता में सुधार लाने का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक है। जबकि भारत जैसे विकासशील देश में 70 प्रतिशत से अधिक कैंसर के रोगियों का पता उन्नत चरण में ही लगता है, जिससे कैंसर रोगियों का प्रबंधन जटिल हो जाता है। कैंसर का उन्नत चरण में पता लगाना रोगियों को तृतीयक स्तर के रेफरल में विलंब होने में योगदान देता है, जहां उपयुक्त इलाज सहित नैदानिक साधन उपलब्ध हो सकते हैं। रेफरल की प्रक्रिया लक्षणों के आरंभ होने से उपयुक्त इलाज तक जारी रहती है जो या तो डॉक्टर द्वारा या स्वयं रोगी द्वारा (जिसे स्वयं रेफरल कहते हैं) किया जाता है। अत: इस रेफरल प्रक्रिया में विलंब किसी भी चरण पर हो सकता है। जैसा कि स्पष्ट है मौजूदा अध्ययनों में मुख्यत: पश्चिमी देशों की जानकारी है, इसमें रेफरल की प्रक्रिया के दौरान विलंब और परिणाम स्वरूप विरोधाभासी रिपोर्टों की संभावना से कैंसर के चरण का विलंब होने का प्रभाव भिन्न हो सकता है और साथ ही उत्तरजीविता पर भी इसका असर होता है। आम तौर पर तीनों चरणों में से किसी भी समय विलंब हो सकता है : रोगी की ओर से देर, रेफरल से पहले सामान्य प्रेक्टिशनर द्वारा देर, तृतीयक स्तर में रेफरल के बाद होने वाली देर (कार्टर, विंस्लेट, 1998) । तदनुसार रेफरल के रास्ते में होने वाले विलंब को मोटे तौर पर इस प्रकार बांटा जा सकता है : लक्षणों की शुरूआत और डॉक्टर को पहली बार दिखाने के बीच की अवधि (प्राथमिक विलंब), डॉक्टर को पहली बार दिखाने और कैंसर का निदान होने की बीच की अवधि (द्वितीयक विलंब), तथा कैंसर के निदान और इलाज शुरू होने के समय के बीच की अवधि (तृतीयक विलंब)। भारत में पहली बार इस अध्ययन की योजना प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक विलंबों का आकलन करने के लिए बनाई गई है तथा स्तन, मुंह और ग्रसनी के कैंसर रोगियों के साथ जुड़े चिकित्सीय और गैर चिकित्सीय कारकों को विचार में लिया जाएगा। स्पष्ट है कि इस अध्ययन से प्राप्त जानकारियों से सूचना शिक्षा संचार (आईईसी) और / या छानबीन कार्यक्रम के माध्यम से प्राप्त सुझावात्मक हस्तक्षेप कार्यक्रमों की ओर आरंभिक संकेत प्रदान किए जा सकेंगे। |
अनुसंधान |
सहयोगात्मक अनुसंधान Research परियोजनाएं |
सहयोगात्मक शोधपत्र |