प्रयोगशाला चिकित्सा
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सामग्री प्रदाता: प्रोफेसर ए के मुखोपाध्याय
परिचय
एम्स में अनेक नए विभाग किसी वर्तमान विभाग को विभाजित कर बनाए गए हैं, परंतु प्रयोगशाला चिकित्सा का विभाग एम्स की तीन स्वतंत्र अस्पताल सेवा प्रयोगशालाओं अर्थात् नैदानिक रोग विज्ञान, नैदानिक रुधिर विज्ञान तथा नैदानिक जीव रसायन को साथ लाकर और उनमें नैदानिक सूक्ष्म जैविकी को मिलाकर बनाया गया और 1988 में एक शैक्षिक विभाग आरंभ हुआ (विकास के इतिहास के लिए : फोटो लिंक)। व्यापक स्वचालन के साथ, यंत्रीकरण इसके मूल का काम करता रहा और गहन नैदानिक सम्मिलन के साथ मेडिकल ऑडिट इसका शिखर बन गया। इस समय, इस विभाग में 145 व्यक्ति काम कर रहे हैं �चार संकाय सदस्य, दो जीव रसायनज्ञ (वैज्ञानिक ग्रेड III तथा IV), सत्रह रेजीडेंट (6 सीनियर रेजीडेंट, 9 जूनियर रेजीडेंट और 2 जूनियर रेजीडेंट गैर शैक्षिक), सात कार्यालय स्टाफ, अड़सठ तकनीकी व्यक्ति, इकत्तीस परिचर। सेवा : सेवा के क्षेत्र में, यह विभाग एम्स के अस्पतालों और उसके कुछ केंद्रों को सेवा देता है और प्रतिदिन ओपीडी तथा वार्डों से 1000 रोगियों का इलाज करते हुए प्रयोगशाला में लगभग 10-12,000 अंवेषण करता है, अर्थात् एक वर्ष में लगभग 65 लाख अन्वेषण (6.5 मिलियन)। इनमें साधारण जीवरसायन अथवा हीमोग्राम से लेकर आणविक तकनीकों (पीसीआर, नासबा आदि) की अपेक्षा वाले अन्वेषण शामिल हैं। यह विभाग नैदानिक रसायन, नैदानिकी रोग विज्ञान, नैदानिक रुधिर विज्ञान तथा नैदानिक सूक्ष्म जैविकी के क्षेत्र में परीक्षण चयन (परीक्षण-पूर्व परामर्श), परीक्षण निष्पादन और परीक्षण व्याख्या (परीक्षण उपरांत परामर्श) देता है और उनकी विशेषज्ञता वाले क्षेत्र की प्रभारी संबंधित संकाय के सदस्य होते हैं। यह विभाग विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय गुणता आश्वासन कार्यक्रमों से जुड़ा हुआ है। अन्वेषणों की परिशुद्धता व्यापक स्वचालन और आंतरिक गुणता आश्वासन द्वारा प्राप्त की गई है। यथार्थता बनाए रखने के लिए उपकरणों का उपयुक्त मानकों के साथ नियमित अंशशोधन द्वारा परिणामों का रखरखाव किया जाता है। शिक्षा : आयुर्विज्ञान में प्रयोगशालाओं की तीव्र प्रगति तथा विस्तार को देखते हुए, भविष्य में वह दिन दूर नहीं जब प्रयोगशाला चिकित्सा में एमडी प्रयोगशाला विज्ञान में आधारभूत स्नातकोत्तर उपाधि बन जाएगी। हिस्टोपैथॉलोजी, कोशिका विज्ञान, जैव रसायन, रुधिर विज्ञान, सूक्ष्म जैविकी तथा आधान चिकित्सा आदि जैसे विशेष विषय अतिविशेष विषयों में रूपांतरित हो जाएंगे और अपने अपने क्षेत्र में डीएम की उपाधि देंगी। अनुसंधान :
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