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अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली
All India Institute Of Medical Sciences, New Delhi
कॉल सेंटर:  011-26589142

जठरांत्र शल्‍य चिकित्‍सा

परिचय

 

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्‍थान में जठरांत्र शल्‍य चिकित्‍सा (जीआई) विभाग की स्‍थापना का प्रस्‍ताव 1980 में दिया गया था। यह विभाग केवल जटिल जीआई शल्‍य चिकित्‍साएं निष्‍पादित करेगा, जो आम तौर पर देश में किसी अन्‍य स्‍थान पर नहीं की जाती हैं। देश के अन्‍य भागों से आने वाले शल्‍य चिकित्‍सकों को प्रशिक्षण दिया जाएगा और भारतीय जठरांत्र शल्‍य चिकित्‍सा समस्‍याओं पर अनुसंधान आयोजित किया जाएगा।.

इस विभाग का सृजन मई 1985 में शल्‍य चिकित्‍सा विभाग की एक इकाई के रूप में किया गया था। सितम्‍बर 1989 में इसे पूर्ण विभाग का दर्जा दिया गया था। अब विभाग सुस्‍थापित है और यहां भारत तथा विदेश में जीआई शल्‍य चिकित्‍सा विभागों की स्‍थापना के लिए बड़ी संख्‍या में शल्‍य चिकित्‍सकों को प्रशिक्षण दिया जाता है। एम. सीएच पाठ्यक्रम की शुरूआत विभाग के उद्देश्‍यों को आगे बढ़ाने के लिए 1994 में की गई थी और 1997 में प्रथम बैच ने यह पाठ्यक्रम पूरा किया। विभाग की विशेषज्ञता के मुख्‍य क्षेत्र हैं पोर्टल हाइपरटेंशन, हिपेटो-पैनक्रिएटो-बाइलरी रोग, हिपेटिक वेनस आउट फ्लो में रूकावट, अल्‍सर युक्‍त कोलाइटिस, जठरांत्र रोग संबंधी हिमोरेज और ग्रसनी के रोग। यहां रोगियों की उच्‍च स्‍तरीय देखभाल प्रदान करने, रेसीडेंट डॉक्‍टरों के प्रशिक्षण, उत्तम अभिलेख रखरखाव, अनुसंधान प्रकाशन और भारतीय रोगों में अनुसंधान पर बल दिया जाता है। विभाग में आठ बिस्‍तरों वाली सघन देखभाल इकाई (आईसीयू) है जिसमें वेंटीलेटर, कार्डियक मॉनिटर, रक्‍त गैस और इलेक्‍ट्रोलाइट प्रबंधन सुविधा है। सभी रोगियों के रिकॉर्ड कम्‍प्‍यूटरीकृत हैं। विभाग के संकाय सदस्‍य द नेशनल मेडिकल जर्नल ऑफ इंडिया, �~ ट्रॉपिकल गैस्‍ट्रोएंटेरोलॉजी के प्रकाशन में सक्रिय रूप से संलग्‍न है, ये दोनों सूचीबद्ध जर्नल हैं और �~ जीआई सर्जरी एनुअल, जो अपने प्रकाशन के 12वें वर्ष में है।

1990 में यह महसूस किया गया था कि विभाग द्वारा य‍कृत प्रतिरोपण के क्षेत्र में विकास किया जाना चाहिए। इसके लिए मस्तिष्‍क मृत्‍यु पर कानून में संशोधन की आवश्‍यकता थी। विभाग ने इस क्षेत्र में नेतृत्‍व किया और 1994 में भारतीय संसद द्वारा मानव अंग प्रतिरोपण अधिनियम पारित किया गया। इसके बाद भारत में यकृत प्रतिरोपण कार्यक्रम स्‍थापित करने का कार्य प्रगति पर है।

अन्‍य गतिविधियों के अलावा विभाग ने स्‍वदेशी चिकित्‍सा उपकरण का विकास किया है। एनोरेक्‍टल कार्य के मूल्‍यांकन के‍ लिए एक एनोरेक्‍टल मैनोमेट्रिक प्रणाली का सफलतापूर्वक विकास किया गया है और इसका वाणिज्यिक विपणन किया जा रहा है। इसोफेजियल मैनोमेट्री और निरंतर पीएच निगरानी प्रणाली से गैस्‍ट्रो-इसोफेजियल रिफ्लक्‍स रोग का निदान विकसित किया गया है और इस उपकरण की प्रौद्योगिकी का अंतरण प्रगति पर है। विभाग ने तीव्र रक्‍त और तरल आधान प्रणाली का भी विकास किया है और वर्तमान में यह एक अल्‍पलागत प्रवाह आधान प्रणाली के तौर पर कार्यरत है। एक पेरिटोनियोवेनस शंट का सफलतापूर्वक विकास किया गया है और अब यह वाणिज्यिक रूप से उपलब्‍ध है।

अब तक 40 से अधिक शल्‍य चिकित्‍सकों ने इस विभाग में दीर्घावधि प्रशिक्षण प्राप्‍त किया है। यहां 6 प्रत्‍याशियों को पीएच. डी डिग्री प्रदान की गई है और 18 प्रत्‍याशियों को एम. सीएच. की डिग्री प्रदान की गई। विभाग ने भारत में एक नई विशेषज्ञता की स्‍थापना में अग्रणी स्‍थान बनाया है, जिसकी आवश्‍यकता लंबे समय से महसूस की जा रही थी, यहां तक कि निजी क्षेत्र में भी। हमें आशा है कि विभाग इस क्षेत्र में एक मॉडल के रूप में भविष्‍य में भी काम करता रहेगा।

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