परिचय
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अंतिम अपडेट :11/7/11
परिचय
मूत्र रोग विज्ञान विभाग की स्थापना 1958 में शल्य चिकित्सा विभाग के मूत्र रोग विज्ञान क्लिनिक के सृजन के साथ एम्स में की गई थी। वर्ष 1963 में डॉ. सरेन्दर मानसिंह की नियुक्ति के साथ एक पृथक मूत्र रोग विज्ञान विभाग का सृजन किया गया जिसमें वे एसोसिएट प्रोफेसर तथा मूत्र रोग विज्ञान विभाग के प्रमुख बनाए गए तथा तथा डॉ. बी सी बापना की नियुक्ति सहायक प्रोफेसर के रूप में की गई थी।
विभाग मूत्र रोग विज्ञान में उच्चतम स्तर के अध्यापन और प्रशिक्षण हेतु समर्पित है। वर्ष 1966 में एम. च. प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरूआत की गई थी और तब से 100 से अधिक स्नातकोत्तरों का प्रशिक्षण दिया गया है और अब वे भारत तथा विदेशों में विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत हैं। विभाग के स्नातकोत्तर प्रशिक्षण कार्यक्रम में 11 पद, 8 नियमित सीनियर रेजीडेंट के पद और सशस्त्र सेनाओं तथा सरकार और पूरे भारत के स्वायत्त निकायों से तीन प्रायोजित प्रत्याशियों के पद हैं। एम. सीएच प्रशिक्षण कार्यक्रम तीन वर्ष की अवधि तक चलता है जिसमें अंतिम एमसीएच परीक्षा से पहले समय समय पर आकलन किए जाते हैं। इसमें एक प्रतियोगी परीक्षा के आधार पर प्रवेश दिया जाता है।
विभाग आधुनिकतम प्रौद्योगिकियों से पूरी तरह सज्जित है जैसे एंडो यूरोलॉजिकल शल्य चिकित्सा (टीयूआर, पीसीएनएल और यूआरएस (1989), ईएसडब्ल्यूएल (1987), यूरोडायनेमिक, अल्ट्रासाउंड, लेजर, सूक्ष्म शल्य चिकित्सा, लेपेरोस्कोपिक शल्य चिकित्सा (1992) तथा रोबोटिक सर्जरी (मार्च 2005)। मूत्र रोग से संबंधित अनेक प्रकार की बीमारियों के लिए आधुनिकतम चिकित्सा देखभाल प्रदान की जाती है और यह उत्तर भारत, बिहार, उड़ीसा, असम और आस पास के अनेक देशों जैसे नेपाल, अफगानिस्तान, भूटान आदि के रोगियों के लिए जटिल समस्याओं के एक संदर्भ केन्द्र के रूप में कार्य करता है। हर वर्ष यहां बाह्य रोगी क्लिनिक में 35000 से अधिक रोगी इलाज के लिए आते हैं जिसमें 12000 नए मामले शामिल हैं। विभाग द्वारा 2000 से अधिक बड़ी शल्य चिकित्साएं हर वर्ष आयोजित की जाती हैं।